बौद्ध पूर्णिमा पर विशेष- सम्राट अशोक ने उज्जैन में बनवाया था सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप, आज भी दबा हुआ है टीलों के नीचे, भीतरी भाग में ठोस मुरम; बाहर मिट्टी से ईंटों की जुड़ाई
ब्रह्मास्त्र उज्जैन। बुद्ध पूर्णिमा पर बरबस ही तराना जाते समय कानीपुरा में दिखने वाले टीले आकर्षित करते नजर आते हैं। इन टीलों के नीचे विशाल बौद्ध स्तूप दबे हुए हैं। उत्खनन में इसके प्रमाण मिलने के बाद इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित करते हुए केंद्र सरकार ने पहरा बैठा दिया। बौद्ध समाज यहां धार्मिक परंपराएं पूरी करने आता है। इन स्तूपों का उत्खनन और संरक्षण करने के लिए राज्य और केंद्र सरकार के स्तर पर कई प्रयास किए गए लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली।
यहां महा स्तूप होने का खुलासा 1938-39 में तत्कालीन ग्वालियर स्टेट के पुरातत्व विभाग के अधीक्षक मो.ब. गर्दे द्वारा यहां किए गए पुरातत्व उत्खनन की रिपोर्ट से हुआ था। गर्दे की रिपोर्ट का प्रकाशन 1940 में किया गया। रिपोर्ट सिंधिया ओरिएंटल इंस्टीट्यूट में संग्रहित है। उत्खनन में भाग लेने वाले इंदौर के स.का. दीक्षित ने 1968 में प्रकाशित अपनी पुस्तक उज्जयिनी : इतिहास तथा पुरातत्व, में इस उत्खनन का आंखों देखा हाल लिखा है। टेकरी को वैश्य टेकरी नाम दिए जाने को लेकर विद्वान मानते हैं कि सम्राट अशोक की रानी वैश्य पुत्री ने संभवत: इसका विस्तार कराया, इसलिए इसे यह नाम मिल गया।