मामा दे दो इधर ध्यान , परेशान हो रहा बापड़ा किसान ..! जमीन मालिकों का गंभीर आरोप–मामला कोर्ट में, फिर भी विवादित जमीन पर हाउसिंग बोर्ड का शिवांगी परिसर
कौड़ियों के दाम भूमि छीनते हुए मकान बनाकर करोड़ों रुपए कमाएगा गृह निर्माण मंडल
उज्जैन। किसी की जमीन पर अगर कोई दबंग बेवजह जबरन कब्जा कर लेता है या औने- पौने दाम में उसे जबरदस्ती खरीदने की कोशिश करता है, तो ऐसे व्यक्ति को भूमाफिया कहा जाता है। अगर यही काम गृह निर्माण संस्था जैसी सरकारी एजेंसी कर रही हो तो उसे क्या कहा जाए ..!
किसान हैरान- परेशान है। पीड़ित किसानों का आरोप है कि उनकी जमीन का तीसरी बार जबरदस्ती अधिग्रहण कर लिया गया है। पिछली दो बार तो बगैर मुआवजा दिए अधिग्रहण कर जमीन वापस कर दी गई थी, परंतु इस बार तो गृह निर्माण मंडल एक तरह से जमीन छीन ही रहा है। जमीन कौड़ियों के दाम पर जबरदस्ती छीनकर करोड़ों रुपए कमाने की योजना को अमलीजामा भी पहना दिया है। कोर्ट में मामला चलने के बावजूद उस जमीन पर मकान बनाकर बेचने के लिए टेंडर तक निकाल दिए गए हैं। उस जमीन पर मकान बनाकर बेचने की बुकिंग तक शुरू कर दी है। अहम सवाल यही है कि क्या किसानों के हमदर्द कहे जाने वाले मामा इस किसान की फरियाद भी सुनेंगे? उनकी अपनी ही सरकारी संस्था गृह निर्माण मंडल किसानों के साथ घोर अन्याय कर रहा है। क्या गृह निर्माण मंडल के अधिकारियों को पीड़ित किसान की जमीन छीनने से रोक सकेंगे..? किसानों के गंभीर आरोप को देखते हुए उच्च स्तरीय जांच की दरकार है।
इंदौर रोड पर हाउसिंग बोर्ड काट रहा कॉलोनी
मामला ग्राम गोयला खुर्द तहसील व जिला उज्जैन में इंदौर रोड पर स्थित सर्वे नंबर 38 मीन व 42 /4 कुल रकबा 3.093 हेक्टेयर भूमि का है। किसान रूपनारायण पिता सत्यनारायण मालीपुरा, उज्जैन सहित अन्य कृषक गणों द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में रिट पिटिशन वर्ष 2016 से दायर है, जो वर्तमान स्थिति में लंबित है और उक्त भूमि का किसानों द्वारा आज दिनांक तक कोई मुआवजा प्राप्त नहीं किया है। पीड़ित किसानों द्वारा बताया जा रहा है कि न्यायालय में मामला लंबित होने के बावजूद मंडल द्वारा पूरी मनमानी करते हुए उक्त भूमि पर हाउसिंग बोर्ड द्वारा कॉलोनी उज्जैन में इंदौर रोड पर शिवांगी परिसर के नाम से बनाई जा रही है। जिसमें लोगों द्वारा मकान बुक किए जा रहे हैं।
मामला न्यायालय में, जमीन विवादित
किसानों का कहना है कि उक्त भूमि पर माननीय उच्च न्यायालय में प्रकरण लंबित है। अतः जब तक निर्णय नहीं हो जाता , उक्त भूमि पर हो रहे कार्य एवं मकान संबंधित बुकिंग पर स्वयं बुकिंगकर्ता एवं निर्माणकर्ता टेंडर वालों की जिम्मेदारी रहेगी। उक्त भूमि वर्तमान स्थिति में भी विवादित है। जो भी इस जमीन को खरीदेगा। भविष्य में वह भी जिम्मेदार होगा। इस संबंध में किसानों ने जाहिर सूचना भी प्रकाशित करवाई है।
इसके पहले दो बार अधिग्रहण कर यही जमीन छोड़ भी दी थी प्रशासन ने अब फिर छीनी जा रही…
दिनांक 9 दिसंबर 2014 को खुद उज्जैन कलेक्टर ने पत्र जारी कर इसी जमीन को अधिग्रहण से मुक्त किया था। जमीन छोड़ते हुए कलेक्टर उज्जैन ने स्पष्ट रुप से लिखा था कि किसानों ने अभी तक इस जमीन पर मुआवजा भी प्राप्त नहीं किया है। इस जमीन की जरूरत ही नहीं थी। फिर भी अधिग्रहण कर लिया और बाद में मुक्त भी कर दिया। ऐसा एक बार नहीं हुआ, बल्कि दो बार हुआ। इसके पूर्व दिसंबर 2006 में भी इसी तरह से पहले जमीन का गृह निर्माण मंडल द्वारा अधिग्रहण किया गया और फिर यह भू अर्जन निरस्त किया गया। अब एक बार फिर गृह निर्माण मंडल के तथाकथित जिम्मेदार अधिकारियों को एक तरह की सनक सवार हो गई है। वह पीड़ित किसानों की जमीन को छीन रहे हैं। जब बार-बार भू अर्जन निरस्त हो रहा है तो समझ से परे यही है कि आखिर इन किसानों की जमीनों को क्यों छीना जा रहा है? कानून कायदे को क्यों हाथ में लिया जा रहा है। जब मामला अदालत में लंबित है तो फिर क्यों किसानों की जमीन पर कब्जा कर यानी जमीन का जबरन अधिग्रहण कर उस पर करोड़ों रुपए कमाने के बदले मात्र 97 लाख रुपए का मुआवजा देने की बात की जा रही है। जाहिर है इस बहाने गृह निर्माण मंडल और संबंधित तो करोड़ों रुपए कमाएंगे, वहीं कुछ लाख रुपए देकर किसान के हक को छीन रहे हैं।
एक ही कंपनी को ठेका ..!
अजीब बात यह है कि सिर्फ एक ही कंपनी पालिया कंस्ट्रक्शन को ठेका देकर लाभ दिया जा रहा है। कहीं इसमें भी कोई भ्रष्टाचार तो नहीं हो रहा है, यह जांच का विषय है।