गर्मी आते ही बिकने लगे शहर में गरीबों के फ्रिज

उज्जैन। अप्रैल के साथ ही अब मौसम में गर्मी का एहसास होने लगा है धीरे धीरे जैसे जैसे दिन चढ़ता है वैसे वैसे गर्मी मैं ठंडे पानी की प्यास लगती है शहर में भी गर्मी के आते ही हम जगह-जगह गरीबों के फ्रिज मिट्टी से बने मटको को बिकते हुए देख सकते हैं गर्मी से बचाव के लिए मिट्टी के घड़े यानि की मटके की डिमांड बढ़ जाती है गर्मी में मटके का पानी जितना ठंडा और सुकूनदायक लगता है, स्वास्थ्य के लिए भी उतना ही फायदेमंद भी होता है। वैसे तो आजकल लोग गर्मियों में ठंडा-ठंडा कूल-कूल फील करने के लिए फ्रिज का पानी पीते हैं। वहीं बड़े-बुजुर्ग लोग फ्रिज के पानी को छोड़कर मिट्टी के घड़े का पानी ज्यादा पसंद करते हैं। शदियों से मिट्टी के घड़े का इस्तेमाल किया जाता आ रहा है। आज भी 90 फीसदी ग्रामीण लोग एवं मध्यमवर्ग गरीब परिवार ऐसे हैं, जो मिट्टी के बर्तन में पानी पीते हैं।

चिकित्सकों की मानें तो कुम्हारों द्वारा बनाए गए मटके का फायदे ही फायदे है। मेडिकल सांइस मैं भी मटके के पानी को उत्तम माना है। नौतपा में सूर्य के तीखे तेवर चरम पर होते है। ऐसे में सूखे कंठ की प्यास बुझाने के लिए हर गली और चौक-चौराहों पर देसी फ्रिज की डिमांड बढ़ गई है। इसीलिए मुख्य चौराहों में सड़क के किनारे मटकों का बाजार लगा हुआ है। कुछ सालों में इन मटकों की मांग शहरी इलाके में कम हो गई थी मगर अब फिर से इसकी मांग होने लगी है।

विशेषज्ञों के अनुसार गर्मी में मटके का पानी जितना ठंडा और सुकूनदायक लगता है, स्वास्थ्य के लिए भी उतना ही फायदेमंद भी होता है। इसका तापमान सामान्य से थोड़ा ही कम होता है जो ठंडक तो देता ही है, पाचन की क्रिया को बेहतर बनाने में मदद करता है।

मटके का पानी पीना से कैंसर की बीमारी का खतरा बहुत कम हो जाता है। घड़े का पानी गले से संबंधी बीमारियों से बचा कर रखता है और यह हमको जुकाम खांसी की परेशानी से भी बचाता है मटके का पानी पीना से पीएच संतुलन सही होता है। मिट्टी के क्षारीय तत्व और पानी के तत्व मिलकर उचित पीएच बेलेंस बनाते हैं जो शरीर को किसी भी तरह की हानि से बचाते हैं और संतुलन बिगडऩे नहीं देते। ऐसे कई फायदे मिट्टी के बने मटको के पानी के पीने से होते हैं शहर के पास इलाके देवास रोड पर खातेगांव कन्नौद से आए कैलाश प्रजापत सन 1992 से पीडियो से शहर में मिट्टी एवं बालू रेती के बने मटको को लेकर आ रहे हैं पहले इनके पिताजी आया करते थे अब यहां शहर में मटके बेचने आ रहे हैं इनके पास गुजरात महाराष्ट्र कानपुर खातेगांव सहित अन्य जगहों के बने हुए मटके उपलब्ध हैं जिनमें बालू रेती से बने मटको की डिमांड बड़ी है क्योंकि बालू रेती से बने मटके एवं नान में पानी काफी ठंडा रहता है मटको की वैरायटी ओ में लाल मिट्टी के मटके काली मिट्टी के मटके सुराई नान के साथ ही वर्तमान समय के हिसाब से आकर्षक कलर एवं डिजाइन वाले मटके भी उपलब्ध है

इनके पास ₹100 से लेकर ₹500 तक के मटके उपलब्ध हैं वही बालू रेत की मटको की डिमांड पिछले दिनों की अपेक्षा बड़ी है जहां एक और सभी और महंगाई ने अपने सर उठा रखा है वही इनके व्यवसाय को पर महंगाई का असर नहीं दिखाई दे रहा है मूल्य पिछले वर्षों के अनुसार ही वर्तमान समय में भी हैं चैनल से चर्चा में कैलाश प्रजापत ने बताया कि वह विगत कई वर्षों से देवास रोड आश्रय होटल के पास अस्थाई रूप से कुछ समय के लिए मटको का व्यवसाय करने के लिए उज्जैन आते हैं इस वर्ष उन्हें अच्छे व्यापार की उम्मीद है