ब्रह्मास्त्र विशेष- उज्जैन में साधु- संत हारे, भूमाफिया जीते, खेल हो गया हजारों करोड़ का

ब्रह्मास्त्र उज्जैन।

सिंहस्थ उपयोग की भूमि को संरक्षित रखने तथा और अधिक भूमि की मांग करने के साथ ही उज्जैन में प्रवाहित हो रही पावन शिप्रा नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए साधु- संतों ने क्या कुछ नहीं किया। तपस्या में लीन रहने वाले साधु- संत सब कुछ छोड़ कर शिप्रा के घाट पर जमा हो गए। अनशन किया, धरना दिया ,प्रदर्शन किया और एक तरह से शिप्रा की परिक्रमा भी की। सरकार को जगाया कि शिप्रा का जल इतना प्रदूषित हो गया है कि अब यह आचमन करने लायक भी नहीं रहा। साधु-संतों को अपना प्रदर्शन भी लंबा चलाना पड़ा। संतों तथा उज्जैन से जुड़ी कई हस्तियों व संगठनों ने यह भी मांग की थी कि सिंहस्थ भूमि के साथ कोई छेड़छाड़ न हो। इसी बीच उन्हें किश्तों में आश्वासन मिलते रहे। साधु- संतों को सिर्फ आश्वासन पर आश्वासन ही मिले। फिर भी एक आशा का दीप जल रहा था कि शायद सरकार साधु- संतों के इस पवित्र और सच्चे निवेदन को स्वीकार करेगी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसा नहीं हुआ। उज्जैन में साधु -संत हार गए और भूमाफिया जीत गए। मास्टर प्लान की बैठक से लेकर बाद तक तमाम विरोध के बावजूद सरकार ने सिंहस्थ उपयोग की भूमि सांवराखेड़ी, दाऊदखेड़ी, जीवनखेड़ी आदि को आवासीय घोषित कर दिया।

भूमाफियाओं के जाल में फंस गए किसान

गौरतलब है कि भू- माफियाओं ने मास्टर प्लान बनने के दौरान ही पूरे विश्वास के साथ सिंहस्थ उपयोग की इस भूमि को औने -पौने दाम में खरीदना शुरू कर दिया था। किसानों ने भी इसलिए बेच दी, क्योंकि उन्हें यह डर दिखाया गया कि यह सिंहस्थ उपयोग की भूमि है और इसके लिए सिर्फ आपको मुआवजा ही मिलेगा। किसान भू- माफियाओं के जाल को समझ नहीं पाए। उन्हें लगा कि जमीन उनके हाथ से निकल जाएगी। इसलिए जो भी दाम मिल रहा है ले लें, परंतु अब वे भी अपने आप को छला हुआ महसूस कर रहे हैं। क्योंकि किसानों से जमीन छल – कपट कर हथिया ली गई। इस जमीनी खेल में भू- माफियाओं के तो हजारों करोड़ का खेल हो गया।

अहम सवाल- अब सिंहस्थ कहां भराएगा..?

अहम सवाल यही है कि जब सिंहस्थ के उपयोग की जमीन को नए मास्टर प्लान में आवासीय घोषित कर दिया गया है, तो आखिर सिंहस्थ कहाँ भराएगा ? सिंहस्थ के लिए जाहिर है कहीं कोई और जमीन का उपयोग किया जाएगा, जो शहर से बहुत दूर होगी। यदि पार्किंग बहुत दूर रखी गई तो लोगों को लंबा रास्ता तय करना पड़ेगा। जिन खुली जमीनों पर सिंहस्थ का मेला भराता था, जब वहां बड़ी बड़ी कॉलोनियां आकार लेंगी तो जाहिर है कि जनसंख्या बढ़ने के साथ ही साथ उनकी व्यवस्था और पार्किंग भी प्रभावित होगी, जिसके कारण पूरा सिंहस्थ मेला ही बहुत बुरी तरह प्रभावित होगा।

नई कालोनियों के मल – मूत्र से शिप्रा और हो जाएगी मैली

साधु- संतों ने शिप्रा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सभी भागीरथी प्रयास किए, लेकिन शिप्रा के तट पर बड़ी-बड़ी कालोनियां बन जाने के बाद उनका मल- मूत्र और गंदगी अब सीधे तौर पर शिप्रा नदी में मिलने लगेगी। इसका दुष्परिणाम यह होगा कि शिप्रा जितनी आज मैली है, उससे कई गुना अधिक मैली हो जाएगी। आचमन की बात तो छोड़िए, हो सकता है कि पानी में बढ़ती दुर्गंध के कारण शिप्रा के तट पर खड़े रहना भी मुश्किल हो जाए।