सीसीटीवी/विडियोग्राफी में निर्वाचन आयोग को चूना लगाने की तैयारी जीएसटी वसूली आयोग से , अदायगी में शासन को ही पलीता

इंदौर में 12 साल से ठेकेदार और कार्यालय के सुपर मास्टर की जमावट पर नहीं आयोग की नजर

इंदौर ।निर्वाचन आयोग के साथ ही सीसी टीवी एवं विडियोग्राफी माफिया शासन को भी चूना लगा रहे हैं।टेंडर प्राप्ति के उपरांत जीएसटी के नाम पर ठेकेदार आयोग से तो वसूली कर लेता है लेकिन यह पैसा उसके बैंक खाते में आते ही शासन के साथ धोखाधडी कर ली जाती है और जीएसटी के नाम के पैसे को हजम कर लिया जाता है।प्रदेश के कई जिलों में माफिया ने ऐसा ही किया है।यहां तक की जीएसटी विभाग ने ऐसे ठेकेदारों की जानकारी निकाल कर उन्हे करोड़ों की वसूली के नोटिस दिए हैं।

जिला निर्वाचन से जूडे सूत्रों ने दावा करते हुए जानकारी दी कि केंद्रीय निर्वाचन (विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव ) के लिए करोडों रूपए का बजट जिलों को विडियोग्राफी और सीसीटीवी कैमरा के लिए दिया जाता है।जिला कार्यालयों में सधे हुए ठेकेदार ही इन कामों को करते हैं। इन ठेकेदारों की जमावट इतनी तगडी है कि वे नए ठेकेदारों को अन्यानेक तरीकों से इस काम से चलता करने में देर नहीं करते हैं।टेंडर डालने से ही इसकी शुरूआत हो जाती है।पूरा गेम जिला कार्यालयों के सधे हुए लोग अंजाम देते हैं।ऐसा ही मामला जीएसटी का है।ठेका मिलने के उपरांत सधे हुए ठेकेदारों का साप्ताहिक बिल पास कर दिया जाता है। इसके विपरित नए ठेकेदारों का मासिक भूगतान में भी आपत्ति पर आपत्ति लगाई जाती है।

इंदौर में ठेकेदारी,उज्जैन जीएसटी का नोटिस-

सूत्र बताते हैं कि इंदौर में सालों से ठेकेदारी करने वाली फर्म देवास की है।इस ठेकेदार ने इंदौर कार्यालय से सालों से जीएसटी का भूगतान प्राप्त किया है। केंद्र सरकार के परिवर्तन में कम हो चुके जीएसटी दर के बावजूद ठेकेदार ने कार्यालय की सेटिंग से पूरानी दर पर ही जीएसटी की वसूली की। इसकी बाद भी इसने जीएसटी की अदायगी नहीं की है। इसकी जानकारी सामने आते ही उज्जैन संभागीय जीएसटी कार्यालय ने फर्म को नोटिस जारी किया है। वास्तव में यह फर्म देवास में पंजीयन है। फर्म देवास जिला की होने से प्रोप्रायटर को उज्जैन जीएसटी कार्यालय से कुछ माह पूर्व बकाया जीएसटी का एक भारी भरकम नोटिस(एक करोड से अधिक की वसूली का सूचना पत्र) जारी किया गया था।मामला अभी ऐन केन प्रकारेण दबा होने की स्थिति बनी हुई है। जीएसटी पूर्ण अदायगी के बगैर ही यही मालिक अपनी अन्य फर्म के माध्यम से एक बार फिर जिला कार्यालय इंदौर को साधने के दावे कर रहा है।खास तो यह है कि जिला इंदौर कार्यालय में पदस्थ कतिपय कर्मचारी चांदी के जूते के लिए इसका पक्ष रखने और प्रश्रय देने के लिए उतावले हैं और जिला निर्वाचन अधिकारी को बरगलाने वाली जानकारी दी जा रही है।

इंदौर में 12 साल से अधिक की जूगलबंदी-

इसे आश्चर्य किंतु सत्य ही कहा जाएगा कि एक ही फर्म 12 साल से निर्वाचन में काम करे और 12 साल से एक ही सुपरवाईजर टीका रहे। इस जुगलबंदी को इंदौर जिला कार्यालय में देखा जा सकता है। देवास की फर्म पिछले 12 वर्ष से विडियोग्राफी और सीसी टीवी के काम कर रही है।खास तो यह है कि एक बार फर्म उंचे से उंचे दाम पर काम करती है और दुसरी बार खुद ही दाम गिरा देती है और तीसरी बार फिर पहली बार के दाम से भी ज्यादा के टेंडर पर काम करती है।फिर भी उसी फर्म से काम करवाया जाता है।जबकि एक बार फर्म निचले दाम पर काम कर चुकी है तो उससे उंची दर पर काम करवाना अपने आप में ही शंका से परे नहीं है।ये सब पिछले 12 साल में इंदौर में हुआ है।जिला निर्वाचन अधिकारी अगर चाहें तो पूरे 12 साल की फाईल बुलवाकर बिलों से इसकी पुष्टि कर सकते हैं।जिनमें करोड़ों के भूगतान की सत्य कथा सामने आ जाएगी।यहां पदस्थ सुपरवाईजर भी बेहतर जमावट और योग्यता के धनी हैं और वे भी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में यहीं आ जमते जमते हैं। अधिकारियों को उनसे अधिक कोई कर्मचारी इस कार्य के लिए नहीं मिल रहा है सालों से।खास तो यह है कि अधिकारियों के लिए निर्वाचन आयोग का नियम है कि 3 साल से अधिक एक ही जिला में पदस्थ रहने वालों को तब्दील कर दिया जाता है लेकिन इस जमावट एवं योग्यता के सामने आयोग का नियम बौना साबित हो रहा है।

उज्जैन में प्यून कर रहा गोपनीयता भंग-

निर्वाचन के कारण काम की अधिकता के चलते जिला कार्यालयों में विभिन्न विभागों के कर्मचारियों को अटैच्ड किया जाता है।इसमें सभी विभागों के अधिकारी कर्मचारी शामिल होते हैं।उज्जैन निर्वाचन कार्यालय में भोज विघालय से चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी पिछले कुछ माह से अटैच्ड किया गया है।शातिर दिमाग यह कर्मचारी यहां आने वाले ठेकेदारों एवं अन्य कुछ सामान्य सेवा के एवज में गोपनीयता भंग करते हुए जानकारी और कागज मुहैया करवा रहा है।ये यहां ठेके की सेटिंग करवाने के दावे भी कर रहा है।खास तो यह बात है कि यह अर्द्ध शासकीय कर्मचारी होकर भी आरटीआई लगा कर अन्य विभागों में एक पत्रकार के साथ अपना मतलब साधने में भी शामिल है। कानून की जानकार एक महिला भी इनके इस ग्रुप में शामिल है।

निर्वाचन का धन बचाना हो तो ऐसे हो काम-

निर्वाचन में सीसी टीवी और विडियोग्राफी के ठेके में आयोग की और से जिला स्तर पर आने वाले करोड़ों के बजट को अगर व्यवस्थित खर्च करना हो तो जिला निर्वाचन कार्यालय टेंडर की शर्त में स्थानीय को ही काम सौंपने की स्थिति स्पष्ट कर दे। अगर गंभीर और इमानदारी का काम ही करवाना है तो उसके लिए प्रति विधानसभा दो ठेकेदारों का चयन निम्नतम दर पर किया जाए। दोनों को ही विधान सभा के प्रथक – प्रथक काम दिए जाएं।स्थानीय होने की स्थिति में प्रतिस्पर्धा के चलते निविदा में दर भी कम आएगी । अगर बडे ठेकेदारों को काम देना मजबूरी हो तो ऐसे में एक ठेकेदार को एक ही जिला में बंधित किया जाए । उससे उसकी सभी फर्म की जानकारी ली जाए एवं अन्य जिलों में टेंडर की प्रक्रिया में उसे शामिल होने से बंधित कर लिया जाए,जिससे की जिले में काम को पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से अंजाम दिलवाया जा सके।

सीसी टीवी / विडियोग्राफी घोटाला सीबीआई पहुंचने की तैयारी में-

इंदौर,उज्जैन रतलाम सहित प्रदेश के अधिकांश जिलों में पिछले दो से तीन विधानसभा चुनाव में सीसी टीवी एवं विडियोग्राफी में जिस तरह से घोटाले को अंजाम दिया गया है उसकी तथ्य पूर्ण जानकारी सीबीआई तक पहुंचने की तैयारी हो चुकी है। इसके लिए जल्द ही प्रदेश के भोपाल स्थित सीबीआई कार्यालय को निर्वाचन आयोग के धन को चुना लगाने के संबंध में शिकायत पहुंचने वाली है।प्रदेश के प्रमुख जिलों में केंद्रीय निर्वाचन आयोग के साथ हुआ यह घोटाला सीबीआई के दायरे में आता है।