चुनाव में वीडियोग्राफी के लिए माफिया गिरोह सक्रिय, जांच का विषय : इंदौर में देवास की फर्म टेंडर तो भरती है थ्री सीसीडी कैमरे का और काम करती है हेंडी कैमरा या मोबाइल से
इंदौर। विधानसभा चुनाव में अब मुश्किल से 5 महीने बचे हैं। ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग भी अपने स्तर पर सारी व्यवस्था में कर रहा है। चुनाव के दौरान किसी भी अप्रिय घटना को समझने के लिए सीसीटीवी एवं वीडियोग्राफी की जाती है। इसके लिए बाकायदा टेंडर निकाले जाते हैं । सीसीटीवी एवं वीडियोग्राफी का टेंडर हथियाने के लिए माफिया गिरोह फिर सक्रिय हो गया है। गौरतलब है कि ठेके के तहत होना तो यह चाहिए कि संपूर्ण चुनावी गतिविधियां थ्री सीसीडी कैमरे से वीडियोग्राफी के जरिए रिकॉर्ड हो। लेकिन ऐसा न करके यह काम मोबाइल या हेंडी कैमरा से कर लिया जाता है और बिल थमाया जाता है थ्री सीसीडी कैमरा से वीडियोग्राफी का। इस माफिया गिरोह की पैठ इतनी मजबूत है कि टेंडर जैसे मामले में किसी अन्य फर्म को घुसने ही नहीं देती। कभी कम , कभी ज्यादा दर के टेंडर भरकर किसी भी तरह इसे हथियाने की मशक्कत चलती रहती है और उसमें माफिया सफल भी हो जाता है।
सरकार से जीएसटी लेकर खुद नहीं भरते जीएसटी
बताया जाता है कि इंदौर में बरसों से ठेकेदारी करने वाली यह फर्म देवास की है। यह जांच का विषय है कि इंदौर निर्वाचन कार्यालय से यह फर्म बरसों से जीएसटी का भुगतान प्राप्त करती है। केंद्र सरकार ने जीएसटी की दर को कम किया है, लेकिन यह ठेकेदार फर्म सेटिंग के चलते पुरानी जीएसटी दर पर ही वसूली कर रही है। इतना होने के बावजूद बताया जाता है कि जीएसटी की अदायगी नहीं की गई है। ऐसे ही एक मामले में उज्जैन संभागीय जीएसटी कार्यालय ने तो फर्म को नोटिस तक जारी कर दिया है। फर्म का पंजीयन देवास में है।
उज्जैन जीएसटी ने दिया एक करोड़ का नोटिस
उज्जैन जीएसटी कार्यालय से कुछ ही माह पहले एक करोड़ से अधिक की वसूली का नोटिस जारी किया गया था। यह और बात है कि नोटिस के बाद मामला ठंडे बस्ते में पड़ा नजर आ रहा है। अभी तक इस मामले में कोई कार्रवाई आगे बढ़ने की जानकारी नहीं है।
दाम कैमरे का और काम मोबाइल से
गौरतलब है कि थ्री सीसीडी कैमरा में गुणवत्ता रहती है, जबकि मोबाइल में वह क्वॉलिटी नहीं रहती। इसके बावजूद टेंडर थ्री सीसीडी कैमरे का भर कर मोबाइल फोन के कैमरे का इस्तेमाल किया जा रहा है , जो सीधे-सीधे सरकारी खजाने को चूना लगाने जैसा है।
सारे चुनावों का काम एक ही फर्म के पास
यह जांच का विषय है कि कैसे एक ही सुपरवाइजर पिछले 12 वर्षों से इस काम को अंजाम दे रहा है। इन वर्षों में जितने भी चुनाव हुए उन सब में इंदौर में यही फर्म काम कर रही है। कभी यह ऊंची दर पर टेंडर भर देती है तो कभी निचले स्तर पर। इस तरह से खेल बदस्तूर जारी रहता है। होना तो यह चाहिए कि अगर निचले स्तर पर कोई रेट तय हुआ है तो उससे थोड़ा बहुत ही ऊंचा रेट हो सकता है, परंतु फर्म अपनी पूरी सेटिंग का फायदा उठाती नजर आ रही है।