शिप्रा के घाटों पर जिन अफसरों व कर्मियों की ड्यूटी , उनके दायित्व की हो जांच

जारी हो नाम और दायित्व की सूची जांच में स्पष्ट हो जाएगा कौन कितना निभा रहा कर्तव्य..?

उज्जैन। मोक्षदायिनी शिप्रा में लगातार नहाने के दौरान मौत का सिलसिला चलता रहा है। हाल ही में नहाने के दौरान डूबने के एक के बाद एक कई मामले हुए। कुछ को बचा लिया गया। फिर भी 6 लोग मौत के आगोश में समा गए। इससे चिंतित होकर उज्जैन कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम ने शुक्रवार को शिप्रा नदी के घाटों का दौरा भी किया और दिशा- निर्देश भी दिए। अहम सवाल तो यह है कि अकेले कलेक्टर तो हर जगह हर समय नहीं रह सकते। प्रशासन ने घाट पर कई अधिकारियों और कर्मचारियों को अलग-अलग जिम्मेदारियां दे रखी है। यानी जिन अधिकारियों के पास जो प्रभार है, उसका दायित्व उसे बखूबी निभाना चाहिए। लगातार हो रहे घटनाक्रम यह बता रहे हैं कि यह दायित्व ठीक ढंग से नहीं निभाया जा रहा है। ऐसी स्थिति में शिप्रा नदी के घाटों की व्यवस्था और सुरक्षा को लेकर जिन – जिन अधिकारियों या कर्मचारियों को जो दायित्व दिए हुए हैं, उनकी भूमिकाओं की जांच करवानी चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना बेहद जरूरी है कि वह अपना दायित्व ठीक ढंग से निभा पा रहे हैं या नहीं। जो नहीं निभा रहे हैं, उन पर कार्यवाही भी होना चाहिए। जिन अधिकारियों और कर्मचारियों को यह जिम्मेदारियां दी गई है ,उनकी सूची भी उजागर करनी चाहिए ताकि आमजन तथा श्रद्धालुओं को भी पता पड़े कि किस तरह की व्यवस्था किस अधिकारी और कर्मचारी के हाथ में है तथा उसने अपना दायित्व ठीक ढंग से निभाया या नहीं।

घाटों पर लगे शिकायत पेटी

हो सके तो घाट पर कुछ स्थानों पर जनहित में शिकायत पेटी भी लगानी चाहिए, ताकि आमजन अपनी शिकायत या सुझाव शिकायत बेटियों में डाल सकें। जानकारों का मानना है कि यदि ऐसा किया जाता है तो निश्चित रूप से जहां आमजन भी सचेत होगा, वहीं जिन लोगों के पास जो दायित्व है उसमें कसावट आएगी। वे उसे ठीक ढंग से निभाने के लिए और सचेत हो जाएंगे। उज्जैन सिर्फ धार्मिक नगरी ही नहीं बल्कि ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल की नगरी है। भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली भी यहीं है और ऐसे ही न जाने कितने ही सिद्ध ऋषि-मुनियों की यह सिद्ध तथा कर्म भूमि है। राजा विक्रमादित्य के साथ भी इसका इतिहास है। इसलिए उज्जैन के प्रति देश – विदेश से लोगों का आकर्षण बना रहता है। मोक्षदायिनी शिप्रा में स्नान करके वे इस पुण्य को भी किसी हालत में नहीं छोड़ना चाहते। तब जाहिर है कि श्रद्धालुओं की व्यवस्था और सुरक्षा दोनों ही बेहद महत्वपूर्ण है।