निर्वाचन में घटिया सीसीटीवी व हेंडी कैमरों या मोबाइल का इस्तेमाल– दाम ऊंचा और काम निचले स्तर का, कंप्यूटर पर आसानी से पकड़ा जा सकता है घोटाला
विशेषज्ञ बता देते हैं कौन सा वीडियो किस कैमरे या मोबाइल से पिक्चराइज किया गया.. पर सेटिंग के चलते कोई नहीं देता ध्यान
इंदौर। चुनाव आते ही निर्वाचन कार्यालय के लिए काम करने वाले ठेकेदारों के चेहरे खिल उठते हैं। अलग-अलग काम के अलग-अलग ठेकेदार होते हैं, परंतु अमूमन देखें तो ज्यादातर वही ठेकेदार होते हैं, जिन्होंने पिछले चुनाव में भी ठेका लिया था। कुछ तो ऐसे हैं जो पिछले कई चुनावों से बतौर ठेकेदार काम करते चले आ रहे हैं। अब यह सेटिंग से होता है या कैसे यह जांच का विषय है। बहरहाल नियमानुसार देखा जाए तो निर्वाचन कार्यालय टेंडर के जरिए इन ठेकों को आमंत्रित करता है। सीसीटीवी एवं वीडियोग्राफी के ठेके में निर्वाचन आयोग बहुत बड़ी राशि खर्च करता है। निर्वाचन की अधिसूचना जारी होते ही विभिन्न दलों को सक्रिय किया जाता है और इन सभी दलों के साथ आयोग की अनुमति से एक-एक कैमरामैन ठेकेदार का चलता है। वीडियोग्राफी की प्रतिदिन की रिकॉर्डिंग निर्वाचन कार्यालय में जमा करना होती है। इसी तरह सीसीटीवी कैमरे भी जिले भर में नाकों एवं अन्य स्थानों पर लगाए जाते हैं , जिनकी संख्या सैकड़ों में होती है। निर्वाचन कार्यालय भुगतान तो बढ़िया क्वालिटी वाले कैमरा का करता है लेकिन ठेकेदार यहां घालमेल कर देते हैं। ठेकेदार बहुत ही सस्ती कीमत पर मिलने वाले चाइनीज और दिल्ली मेड सीसीटीवी कैमरे लगाते हैं, जिनकी कीमत बहुत अधिक नहीं होती। ठेकेदार निर्वाचन कार्यालय से प्रतिदिन के हिसाब से प्रति सीसीटीवी का कम से कम 120 रुपया किराया वसूलते हैं। जबकि इससे कई गुना अधिक तो वह सीसीटीवी कैमरे की कीमत के रूप में ही कमा लेता है। वीडियोग्राफी में थ्री सीसीडी कैमरे की बजाए हेंडी कैमरा या मोबाइल से ही वीडियोग्राफी हो जाती है। जाहिर है उस समय चुनाव के कारण काम बहुत बड़े स्तर का होता है। इसलिए निर्वाचन कार्यालय के ऊपरी स्तर के बड़े अधिकारियों को तो इसकी भनक भी नहीं लग पाती। यह चर्चा भी अक्सर रहती है कि निगरानी करने वाले निचले स्तर के अधिकारियों को ठेकेदार द्वारा साध लिया जाता है और इसी कारण यह पता भी नहीं चल पाता कि किस तरह इन कैमरों के जरिए वीडियोग्राफी की गई या सीसीटीवी कैमरे कितने हल्के स्तर के थे। क्वालिटी सही नहीं होने के कारण कई बार तो इनके पिक्चर भी साफ नहीं आ पाते। वीडियोग्राफी से जुड़े एक विशेषज्ञ ने बताया कि यदि सही ढंग से जांच हो तो यह घोटाला भी बहुत आसानी से पकड़ में आ सकता है। कैमरे की समझ और कंप्यूटर मामलों के जानकार कंप्यूटर पर आसानी से बता देते हैं कि अमुक फोटो या वीडियो किस तरह के कैमरे से लिया गया है। यदि मोबाइल से लिया गया है तो उसका भी पता चल जाता है और मोबाइल का स्तर क्या है यह भी पता चल जाता है, लेकिन सेटिंग के चलते कोई इस पर ध्यान नहीं देता। निर्वाचन कार्यालय के जिम्मेदार बड़े अधिकारी सिर्फ यही आंकड़ा बता सकते हैं कि शहर या जिले के कितने स्थानों पर कितने सीसीटीवी कैमरे लगे हैं या फिर कितने थ्री सीसीडी वीडियो हायर किए गए हैं। इसी का फायदा ठेकेदार कंपनी जमकर उठाती है और टेंडर में दी गई शर्तों का उल्लंघन करते हुए जमकर कमाई करती है। निर्वाचन के विभिन्न ठेकों के मामले में दाम और काम को देखते हुए यदि निष्पक्ष जांच हो जाए तो करोड़ों रुपए का घोटाला सामने आ सकता है। बताया जाता है कि निर्वाचन कार्यालय में देवास से लेकर इंदौर तक देवास की एक कंपनी सीसीटीवी तथा वीडियोग्राफी का ठेका लेती रही है। फिलहाल पूरे मामले की जांच की दरकार है।