जूता उद्योग पर ‘सरकारी जूता’ बन भारी पड़ रहा एक नियम

 

इंदौर। केंद्र सरकार द्वारा फुटवियर निर्माताओं के लिए ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) की अनिवार्यता की गई है। पचास करोड़ रुपये से अधिक टर्नओवर वाले निर्माताओं पर एक जुलाई से यह नियम लागू हो चुका है, लेकिन पांच से 50 करोड़ रुपये के टर्नओवर वालों पर एक जनवरी, 2024 से यह लागू होगा, वहीं पांच करोड़ रुपये से कम वाले फुटवियर निर्माता जुलाई 2024 से इस दायरे में आएंगे। बीआईएस के मापदंडों का पालन नहीं करने पर छोटे व मध्यम फुटवियर निर्माताओं पर दोहरी मार पड़ेगी।

लागत बढ़ेगी तो 100 की चप्पल 250 रुपये में मिलेगी

अभी जहां इंदौर सहित देश में कोलकाता, लखनऊ, दिल्ली, कानपुर व आगरा जैसे कई शहरों में कुटीर उद्योग के रूप में छोटे कारखानों में फुटवियर उद्योगों के बंद होने का संकट मंडराने लगा है। इसका सीधा प्रभाव आम जनता की जेब पर भी पड़ेगा। अभी भी 60 प्रतिशत जनसंख्या बहुराष्ट्रीय या ब्रांडेड कंपनियों के बजाय स्थानीय स्तर पर बनने वाले फुटवियर पर निर्भर है। उद्योग जब रिसाइकल पीवीसी का उपयोग नहीं कर पाएंगे तो फुटवियर की लागत बढ़ जाएगी। ऐसे में जो चप्पलें अभी 100 रुपये में बाजार में उपलब्ध होती है, वह 200 से 250 रुपये में मिल पाएंगी।

नए नियमों में है यह बाध्यता

फुटवियर निर्माताओं को फैक्ट्री का रजिस्ट्रेशन व दस्तावेजीकरण भी करना होगा। कंपनियों को अपने यहां परीक्षण की सुविधा भी विकसित करना होगा और जांच रिपोर्ट बीआईएस को देनी होगी। इसके आधार पर बीआईएस माल बेचने की अनुमति देगा। फुटवियर निर्माताओं को फुटवियर के मोल्ड का पंजीयन भी करवाना होगा। फिलहाल एक मोल्ड के पंजीयन पर 50 हजार रुपये खर्च आता है।