विपरीत परिस्थितियों में भी जिसकी श्रद्धा स्थिर रहे वह सच्चा सम्यक दृष्टि है-विहर्ष सागरजी
नगर प्रतिनिधि इंदौर
मोदी जी की नसिया में चातुर्मास कर रहे राष्ट्रसंत विहर्ष सागरजी महाराज ने मंगलवार को प्रवचन देते हुए सम्यक दर्शन (देव, शास्त्र, गुरु के प्रति श्रद्धान) का महत्व बताते हुए कहा कि जैन कुल में जन्म लेकर जैन कहलाना तभी सार्थक होगा जब जैन का लक्ष्य सम्यक दर्शन की प्राप्ति के साथ सम्यक दृष्टि बनने का भी हो। सम्यक दृष्टि जीव की देव शास्त्र गुरु के प्रति श्रद्धा विपरीत परिस्थितियों में भी स्थिर, दृढ़ बनी रहती है।
आचार्य श्री ने सम्यक दृष्टि जीव की परिभाषा बताते हुए कहा कि सम्यक दृष्टि भय, लोभ, लालच, आकांक्षा ग्लानि और 25 दोषों से रहित होता है एवं सिर्फ देव, शास्त्र सहित सभी पंथों के सभी पिचछी कमंडल धारी गुरुओं, आचार्यो, मुनियों के प्रति सच्चा श्रद्धान रखते हुए और उनके जैसे गुणों की प्राप्ति के लिए नमस्कार करता है अन्य किसी को नहीं।
इसके पूर्व संघस्थ मुनि श्री विजयेशसागर जी महाराज ने 35 अक्षरों और 28 मात्राओं वाले णमोकार महामंत्र का महत्व बताते हुए कहा कि यह एक ऐसा मंत्र है जिससे 84 लाख मंत्रों की उत्पत्ति हुई है। इस मंत्र के माध्यम से पंच परमेष्ठी भगवान और लोक में जितने भी निरग्रंथ वीतरागी श्रमण है उन्हें नमस्कार किया गया है। जैन कुल में बच्चे का जन्म होने के बाद जब पहली बार मां उसे जिन मंदिर लेकर जाती है तो उसके कान में णमोकार मंत्र सुनाती है और बड़ा होने पर उसे णमोकार मंत्र बोलना सिखाती है।
प्रारंभ में आचार्य श्री विराग सागर जी महाराज के चित्र का अनावरण एवं चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन श्री प्रिंसिपल टोंगिया, अर्पित वाणी, महावीर झांझरी और रीतेश पाटनीने किया। मंगलाचरण पंडित रमेशचंद बांझल ने किया इस अवसर पर हंसमुख गांधी, भरत केशरवाला, संगीत जैन एवं आलोक जैन आदि सैकड़ों की संख्या में महिला पुरुष उपस्थित थे। संचालन श्री कमल काला
ने किया।