ब्रह्मास्त्र विशेष : भारतीय परंपरा, संस्कृति और भाषा के लिए गौरव, कर्नाटक का एक ऐसा गांव जहां पूरी तरह बोली जाती है संस्कृत भाषा
गांव मत्तूर में गूंजते हैं वैदिक मंत्र, पढ़ाया जाता है ऋग्वेद और यजुर्वेद
उज्जैन। हमारे देश के कर्नाटक में एक ऐसा भी गांव है, जहां संस्कृत आम भाषा की तरह बोली जाती है। गुरुकुल में विद्यादान की परंपरा आज भी प्रचलित है और वैदिक मंत्र आज भी वहां की गलियों में गूंजते हैं। शायद आपको विश्वास नहीं होगा, लेकिन कर्नाटक के शिगोगा जिले में एक ऐसा ही गांव मत्तूर है, जो सभी भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा को पूरी तरह अपने में समेटे हुए हैं। इस गांव की भाषा तथा संस्कृति को देखकर गर्व महसूस होता है। इस गांव में वहां की संस्कृति तथा वैदिक मंत्रों को सुनो तो ऐसा लगता है, मानों हजारों साल पीछे पहुंच गए हैं। यह गांव तुंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। यहां की छटा बेहद ही खूबसूरत है। जिसे देखकर लगता है कि भारत पहले हरियाली के रूप में भी कितना समृद्ध था। इस गांव में न तो कोई होटल है और न ही आसपास रुकने की कोई और व्यवस्था। रुकना है तो किसी के घर पर ही रुकना होगा। या फिर यहां से 15 किलोमीटर दूर शिगागो में। यह और बात है कि यहां अतिथि देवो भव की परंपरा भी है। लोग जब यहां से निकलते हैं तो इस गांव में वैदिक मंत्रों की आवाज आती है। यह जानना भी चाहा कि क्या वैदिक शिक्षा जहां हो रही है, उस स्थल को देखा जा सकता है, तो शिक्षक महोदय ने स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वैदिक शिक्षा को होते हुए देखा नहीं जा सकता और न ही फिल्माया जा सकता है। वैसे आप पूरे गांव में घूम सकते हो और जहां संस्कृत का अध्ययन हो रहा है उस स्थान को जरूर देख- सुन सकते हो। फिर हम पास के गांव में जाते हैं, जहां पर भी मत्तूर की तरह ही पूरी तरह संस्कृत बोली जाती है और उसी संस्कृति को जिया जाता है। यहां भी मत्तूर गाँव की तरह ही वैदिक पाठशाला है। यह गांव भी नदी के किनारे है। 3 छात्र ऐसे मिले जो ऋग्वेद पढ़ रहे थे ऋग्वेद के पाठी ने बताया कि वह 3 साल की उम्र से ऋग्वेद पढ़ रहे हैं। अभी 17 साल उम्र है तथा 3 साल और ऋग्वेद पढ़ना है।
पुरातन भारत की तस्वीर उभरती है इस गांव में
गांव में पुरातन भारत की तस्वीर नजर आती है। जहां भी जाओ, कुछ नया ही देखने को मिलता है। गांव में स्कूल भी है, स्कूल बस भी है और शानदार बिल्डिंग भी। यह दो गांव और इसके अलावा भी कुछ ऐसे इलाके हैं, जहां सालों साल पुरानी परंपरा और संस्कृति को अपनाया हुआ है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां कन्नड़, तमिल आदि कई भाषाओं की मिली जुली यानी इन भाषाओं की जननी संस्कृत को बिल्कुल वैसे ही बोला जाता है , जैसे हम हिंदी – अंग्रेजी बोलते हैं। एक विद्वान आचार्य ने बताया कि जब तक परंपरा और संस्कृति जीवित रहती है तब तक संस्कृत भाषा अस्तित्व में रहेगी और तब तक भारत का अस्तित्व भी रहेगा। संस्कृत भाषा कभी नहीं मिटेगी और इसी तरह भारत भी सदैव भारत रहेगा। भारत की आत्मा भारत की संस्कृति ही है। भारत का महत्व भी यही है। ऐसा कहते हैं कि यदि किसी देश को खत्म करना हो तो उसकी संस्कृति और भाषा को खत्म कर दो? क्या यह सही है। विद्वान आचार्य पूरी तरह सहमत नजर आते हैं। उनका कहना है कि यह सही है अंग्रेजों ने भारत की संस्कृति और भाषा संस्कृत को इसीलिए बहुत नुकसान पहुंचाया। उन्होंने गुरु- शिष्य परंपरा की पद्धति को नष्ट करने की कोशिश की तथा आंग्ल भाषा को आगे बढ़ाया। इसीलिए मैं कहता हूं कि गुरु शिष्य परंपरा हमारी संस्कृत- संस्कृति का अध्ययन कीजिए। यह बहुत जरूरी है।
पोषण कीजिए संस्कृत भाषा का, यही संस्कृति भारत की आत्मा
संस्कृत भाषा का और संस्कृति का पोषण कीजिए। उसे आगे बढ़ाइए। तभी हमारी संस्कृति बच सकती है, तभी हम हमारे देश भारत की आत्मा संस्कृति और परंपरा को बचा सकते हैं। नहीं तो आने वाले समय में हमारे भारत देश की पुरातन परंपरा का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा। इस गांव में गायत्री वेद पाठशाला है। यहां पर यजुर्वेद ,ऋग्वेद, मीमांसा और संस्कृत का अध्ययन करवाया जाता है। यहां वे अन्य स्कूल की तरह कोई डोनेशन नहीं लेते।
भारतीय परंपरा को बचाने के लिए यह गांव पूरी तरह संस्कृत और संस्कृति से बंधा हुआ
भारतीय परंपरा को बचाने के लिए यह गांव यह सब कुछ कर रहा है। वहां के लोगों का कहना है कि हमें नहीं पता कि यह कब तक चल पाएगा परंतु हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि गुरुकुल की यह परंपरा आने वाले वर्षों में भी चलती रहे और ज्यादा से ज्यादा शिष्य इस पाठशाला में प्रवेश लें। यहां के लोग सफेद पंछा लपेटते हैं और सफेद पंछा ही शरीर पर ऊपर भी धारण करते हैं। ऐसा नहीं है कि यहां के बच्चे सिर्फ संस्कृत भाषा ही जानते हैं, अन्य भाषाओं का भी उन्हें पर्याप्त ज्ञान है।