प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र को लेकर सुनवाई टली, अब अगस्त के अंत में होगी

 इंदौर ।   सरकारी और निजी अस्पतालों में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र नहीं होने के मुद्दे को लेकर हाई कोर्ट में चल रही जनहित याचिका में सोमवार को बहस होनी थी, लेकिन टल गई। कोर्ट अब इस मामले में अगस्त के अंत में सुनवाई करेगी।
याचिका में कहा गया है कि एक तरफ तो शासन जगह-जगह प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोल रहा है, दूसरी तरफ निजी और सरकारी अस्पतालों में ये औषधि वितरण केंद्र ही नहीं हैं। प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों की आवश्यकता निजी और शासकीय अस्पतालों में ज्यादा होती है। जन औषधि केंद्र नहीं होने से मरीजों को महंगी दवाइयां खरीदने को मजबूर होना पड़ता है। इधर, शासन का कहना है कि शासकीय अस्पतालों में जन औषधि केंद्रों की आवश्यकता ही नहीं है, क्योंकि इन अस्पतालों में भर्ती मरीजों को शासन द्वारा निश्शुल्क दवाइयां उपलब्ध कराई जाती है।
20 से लेकर 90 प्रतिशत तक मिलती है छूट : प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों पर जेनरिक दवाइयां मिलती हैं। ये दवाइयां ब्रांडेड के मुकाबले 20 से लेकर 90 प्रतिशत तक सस्ती होती हैं। डाक्टरों के अनुसार जेनरिक दवाइयां और ब्रांडेड दवाइयों की गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं होता है, लेकिन ब्रांडेड दवाइयों को बनाने वाली कंपनियां इनके प्रचार प्रसार पर जमकर पैसा खर्च करती हैं। यही वजह होती है कि ये जेनरिक दवाइयों के मुकाबले महंगी होती हैं, जबकि जेनरिक दवाइयों के विज्ञापन पर कोई खर्च नहीं किया जाता है।