पंचगव्य खेती प्राकृतिक कृषि पध्दति है – वीरेन्द्र जैन – बदलते क्लाइमेट से पनप रही है कई तरह की बीमारियाँ

इंदौर। 2 अगस्त ।पंचगव्य, जो गौमाता के गुणों से युक्त है प्राचीन भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।उपरोक्त विचार म प्र एवं छत्तीसगढ़ राज्य विश्व हिंदू परिषद क्षेत्र गोरक्षा प्रमुख सोहन विश्वकर्मा ने पंचगव्य कार्यशाला में व्यक्त करते हुए कहा कि पंचगव्य थेरेपी का उपयोग विभिन्न रोगों के इलाज में आजकल बढ़ता जा रहा है क्योंकि बदलते क्लाइमेट से दुनिया में पनप रही है कई तरह की बीमारियाँ ।गौमाता के ये पंचगव्य स्वास्थ्य सुधार के लिए एक प्राकृतिक औषधि के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। गोमूत्र में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो रोगों से लड़ने में मदद करते हैं, जबकि गोमय का उपयोग अगरबत्ती और धूप के रूप में विशेष रूप से किया जाता है। इसके अलावा, दूध, दही, और घी में पोषक तत्व अधिक होते हैं, जो हमारे शरीर के लिए लाभदायक होते हैं।

वीरेन्द्रकुमार जैन ने कहा कि पंचगव्य खेती भी एक प्राकृतिक कृषि पद्धति है, जिसमें गौमाता से प्राप्त पंचगव्य से खेती करने के लिए फसलरक्षक और खाद का उपयोग किया जाता है। यह एक पर्यावरण संरक्षणीय और स्वदेशी खेती प्रक्रिया है जो उत्पादन को बेहतर बनाने और खेती से जुड़े किसानों को लाभ पहुंचाने में मदद करती है। इस पंचगव्य थेरेपी और पंचगव्य खेती के लाभ को हम सभी को समझना चाहिए और इसे अपनी दैनिक जीवन में शामिल करने का प्रयास करना चाहिए। यह एक स्वदेशी तथा संस्कृति का अभिन्न अंग है, जो हमारे प्राचीन विरासत को जीवंत रखता है ।इस अवसर पर फ़ोल्डर का विमोचन भी किया गया । प्रारंभ में अध्यक्ष विवेक जैन ने स्वागत किया ।आभार सचिव शारदा जैन ने व्यक्त किया ।