भाव खराब हो, तो बिगड़ जाता है भव, भाग्य और भविष्य : विजयराजजी मसाप्रवचन में किया बैर भाव से बचने का आव्हान
रतलाम । परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने बैर भाव से बचने का आव्हान किया है। उनके अनुसार किसी के प्रति भाव खराब हो, तो हमारा भव खराब हो जाता है। भव खराब होने पर भाग्य और फिर भविष्य भी खराब हो जाता है, इसलिए भाव खराब रखे। भाव में खराबी से बचने का एक ही तरीका विलंब है।
सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में चातुर्मासिक प्रवचन देते हुए आचार्यश्री ने कहा कि विलंब की दवाई किसी मेडिसिन की दुकान पर नहीं मिलती। केमिस्ट से बुखार, सिरदर्द, कमर दर्द आदि सभी बिमारियों की दवाएं मिल सकती है, लेकिन बैर भाव को दूर करने की दवा किसी के पास नहीं है। यह दवा सिर्फ भगवान महावीर के पास है। बैर का भाव आए तो उसे कल पर छोड दो और प्रेम का भाव हो, तो उसे आज ही करे। इसी प्रकार क्रोध को भी कल पर और क्षमा को आज करने का भाव रखना चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा कि जीवन में सिर्फ पॉजीटिव आज और नेगेटिव कल करने एक सूत्र अपना लो, तो बहुत बडी क्रांति घटित हो जाती है। लेकिन विडंबना है कि आज मनुष्य इसके विपरीत चलता है। बैर ही सारी समस्याओं का मूल होता है और बैर से बचने की अटूट दवा विलंब है। विलंब की दवा जो भी लेता है, वह बैर से होने वाले नुकसानों से बच जाता हैं। बैर घटाने के लिए अनुराग बढाए, क्योंकि अनुराग की स्थिति में बैर कभी नहीं रहता है। आचार्यश्री ने कहा कि दुष्टों का बल हिंसा, राजाओं का बल दण्ड, स्त्रियों का बल सेवा और गुणवानों का बल क्षमा है। सबकों गुणवान बनने का प्रयास करना चाहिए। आरंभ में उपाध्याय प्रवर, प्रज्ञारत्न श्री जितेश मुनिजी मसा ने आचारण सूत्र का वाचन करते हुए संसार में व्याप्त दुखों पर प्रकाश डाला। उन्होंने हिंसा से बचने का आव्हान किया। इस दौरान बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।