नानी बाई रो मायरो की कथा प्रेरणादायी- अलकनंदा
अकोदिया मंडी। लाहोटी परिवार के द्वारा सार्वजनिक धर्मशाला मे तीन दिवसीय शुक्रवार दोपहर 2 से शाम 4 बजे तक धार्मिक कथा नानी बाई रो मायरो का आयोजन किया गया। कथा सुनने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पंडाल में पहुंचे। कथा के प्रथम दिवस कथावाचक अलकनंदा ने कहा कि नानी बाई रो मायरो अटूट श्रद्धा पर आधारित प्रेरणादायी कथा है। कथा के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण का गुणगान किया जाता है। भगवान को यदि सच्चे मन से याद किया जाए तो वे अपने भक्तों की रक्षा करने स्वयं आते हैं। अलकनंदा ने कथा का झांकियों के साथ विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि नानी बाई रो मायरो की शुरूआत नरसी भगत के जीवन से हुई। नरसी का जन्म गुजरात के जूनागढ़ में आज से 600 साल पूर्व हुमायूं के शासनकाल में हुआ।
नरसी जन्म से ही गूंगे.बहरे थे। वो अपनी दादी के पास रहते थे। उनका एक भाई.भाभी भी थे। भाभी का स्वभाव कड़क था। एक संत की कृपा से नरसी की आवाज आ गई तथा उनका बहरापन भी ठीक हो गया। नरसी की लड़की नानीबाई का विवाह अंजार नगर में हुआ। इधर नरसी की भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया। नरसी श्रीकृष्ण के अटूट भक्त थे। वे उन्हीं की भक्ति में लग गए। भगवान शंकर की कृपा से उन्होंने ठाकुर जी के दर्शन किए। भक्ति पाकर नरसी ने सांसारिक मोह त्याग दिया और संत बन गए।
कथावाचक अलकनंदा जी ने कहा की संसार मे मनुष्य दिखावा करने मे पीछे नहीं रहता हे लेकिन भगवान के सामने मनुष्य का दिखावा नहीं चल सकता हे। भगवान से प्रेम करने के साथ साथ मन मे डॉ भी रखना आवश्यक हे क्योंकि गलत कार्य करने के दौरान हम भगवान की नजरो मे हे। शाम 4 बजे मधुर भजनो के साथ आरती उतारी गई।