मेडिकल बोर्ड बैठक में देरी , “रोशनी क्लिनिक” के दंपत्तियों पर निराशा का भंवर

-प्रधानमंत्री की महत्ती योजना और निं:संतान दंपत्ति की आधे वर्ष की मशक्कत में मेडिकल बोर्ड बैठक में देरी लगी

-सरकार की महती योजना के बावजूद मेडिकल बोर्ड बैठक में देरी से गरीब नि:संतान दंपत्ति निराशा के भंवर में

उज्जैन।प्रधानमंत्री की महती योजना में जिला एवं संभाग के स्वास्थ्य विभाग की मेडिकल बोर्ड बैठक में देरी होने से नि:संतान गरीब दंपत्ति निराशा के भंवर में आ गए ।आधे वर्ष से अधिक की  जांच एवं तमाम प्रक्रिया की मशक्कत के बाद जिन नि:संतान दंपत्ति को संतान की आस जगी है उन्हें बैठक के इंतजार ने निराशा के भंवर में धकेल दिया। जिला और संभाग के मेडिकल बोर्ड बैठक में रोशनी क्लिनिक के आधा दर्जन से अधिक प्रकरण पिछले दो माह से रूके पड़े रहे और गरीब दंपत्ति संतान की आस में।

नि:संतान दंपत्तियों के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2016 से विशेष योजना चलाई है।रोशनी क्लिनिक के नाम पर जारी इस योजना में केंद्र सरकार गरीब नि:संतान दंपत्तियों को स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध करवा कर उन्हें संतान प्राप्ति के लिए मदद करती है। इसमें आने वाले खर्च को केंद्र सरकार ही वहन करती है।राज्य सरकार की और से संबंधित की जांच एवं प्रमाणिकरण किया जाता है।उज्जैन जिला एवं संभाग में पिछले तीन माह से अधिक समय से  मेडिकल बोर्ड की बैठक न होने की वजह से करीब डेढ दर्जन प्रकरण संभाग के सातों जिलों के अटके रहे। ऐसे में करीब इतने ही गरीब दंपत्ति संतान की आस में मेडिकल बोर्ड बैठक होने की आस लगाए बैठे रहे।अधिकृत सूत्र बताते हैं कि नियमानुसार जिला एवं संभागीय मेडिकल बोर्ड की बैठक प्रतिमाह कम से कम एक बार होनी ही चाहिए। इसके विपरित पिछले तीन माह से यह बैठक मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों के स्थानांतरण एवं अन्य कारणों से नहीं हो सकी । क्षेत्रीय संचालक का पद भी करीब 6 माह से रिक्त पड़ा है इस पद का दायित्व उज्जैन के पूर्व सीएमएचओ संजय शर्मा को ही प्रभारी के रूप में निभाना पड़ रहा है। अब वे ही प्रभारी क्षेत्रीय संचालक की भूमिका में हैं। इधर सीएमएचओ उज्जैन के पद पर डा दीपक पिप्पल आ गए हैं।स्थानांतरण प्रक्रिया के कारण भी कुछ देरी इसमें संभव हुई है । ऐसे में नि:संतान गरीब दंपत्ति सरकार की और आस लगाए बैठे रहे। मेडिकल बोर्ड की स्वीकृति में प्रकरण होने से और अधिक समय लगने से कई दंपत्ति निराशा की स्थिति में रहे।

3 माह से नहीं हुई बैठक-

अधिकृत सूत्रों का कहना है कि रोशनी क्लिनिक के प्रकरणों को लेकर उज्जैन जिला में करीब तीन माह से बैठक नहीं हुई है। इसके पीछे कारण यह सामने आ रहा है कि पिछले सीएमएचओ डा.संजय शर्मा का तबादला होने के कारण ऐसी स्थिति बनी । उसके बाद नए अधिकारी आए और इस दरमियान यह समय अवधि बीत गई। ऐसी ही स्थिति कुछ अन्य जिलों में भी रहीं जिसका नतीजा यह रहा कि जिला मेडिकल बोर्ड में ही प्रकरण अटके रह गए। वहां से प्रकरण स्वीकृति के बाद संभागीय बोर्ड बैठक में भेजे गए।

6 माह की मशक्कत फिर प्रकरण बोर्ड में –

योजना का लाभ लेने के लिए गरीब नि:संतान दंपत्ति को रोशनी क्लिनिक में अपना पंजीयन करवाने के साथ ही चिकित्सक के परामर्श अनुसार वहीं पर नि:शुल्क जांच करवाना होती है। इन जांचों के परिणाम के साथ ही दंपत्ति को रोशनी क्लिनिक के चिकित्सक उपचार भी देते हैं।सामान्य कमियों को उपचार देकर पूर्ण कर दिया जाता है।अधिकांश दंपत्ति सामान्य कमी के कारण ही संतान  से वंचित रहते हैं। ऐसे कम ही प्रकरण सामने आते हैं जिनमें 6 माह के उपचार के उपरांत भी कोई लाभ नहीं होता । उपचार एवं मेडिकल जांच की रिपोर्ट के आधार पर ऐसे प्रकरण को रोशनी क्लिनिक के चिकित्सक जिला बोर्ड के लिए प्रेषित करते हैं।जिला बोर्ड में प्रकरण प्रस्तुत करने की मशक्कत भी खुद दंपत्ति को करना होती है। तमाम दस्तावेजों एवं प्रमाणिकरण उन्हें स्वयं ही करवाने जाना पडता है। जिला बोर्ड से प्रकरण संभागीय बोर्ड में भेजा जाता है।वहां से स्वीकृति के उपरांत ही जिला से ऐसे दंपत्ति को आईवीएफ सेंटर के लिए निर्धारित तारीख पर भेजकर वहां उन्हे आईवीएफ करवाया जाता है। इसकी राशि शासन स्तर से आईवीएफ केंद्र को अदा की जाती है।

क्या है योजना ?  –

केंद्र सरकार की इस योजना का लाभ गरीब नि:संतान दंपत्तियों को मिलता है।इसमें जिला स्तर पर रोशनी क्लिनिक पर दंपत्ति की जांच की जाती है।उन्हें उपचार दिया जाता है। इसके उपरांत अगर उन्हें संतान प्राप्ति नहीं होती तो प्रकरण को सभी जांच को प्रमाणित करते हुए चिकित्सक जिला मेडिकल बोर्ड में भेजते हैं वहां से प्रकरण संभागीय बोर्ड में स्वीकृत करते हुए ऐसे दंपत्तियों को आईवीएफ के लिए बनाए गए केंद्रो में भेजकर नि:शुल्क आईवीएफ करवाया जाता है।एक बार के आईवीएफ के निष्फल  होने पर पून: जांचों की पुष्टि करते हुए ऐसे दंपत्ति को दुसरा अवसर भी नि:शुल्क रूप से दिया जाता है। इसमें आने वाले खर्च को शासन स्तर पर वहन किया जाता है।

-बीते सप्ताह ही हमने संभागीय मेडिकल बोर्ड की बैठक की है। सभी 07 जिलों के जितने प्रकरण थे सभी को स्वीकृति देते हुए जिलों को संबधित के आईवीएफ के लिए भेज दिया गया है।वैसे प्रतिमाह बैठक होती है,प्रकरण इकठ्ठे होने पर भी बैठक कर स्वीकृति देते हैं।

-डा.संजय शर्मा, प्रभारी क्षेत्रीय संचालक,स्वास्थ्य सेवाएं संभाग,उज्जैन