एक आवेदन ने अटकाई मजदूरों की सांस, कहीं इस बार भी मिल न जाए घुड़की
नगर प्रतिनिधि इंदौर
क्या आप सोच सकते हैं कि न्यायालय में प्रस्तुत एक आवेदन हजारों लोगों की सांस अटका सकता है। ऐसा हुआ है। मामला है हुकमचंद मिल के लगभग 6 हजार मजदूर और उनके स्वजन का। हुकमचंद मिल के मजदूरों के मुआवजा का मामला निराकरण के बहुत करीब है। उन्हें उम्मीद थी कि सोमवार 7 अगस्त को मामले की सुनवाई होगी और कुछ न कुछ निराकरण निकल ही आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
हुकमचंद मिल प्रकरण सुनवाई के लिए लगा ही नहीं। वजह थी कि पिछली सुनवाई पर प्रस्तुत आवेदन ही अब तक लंबित पड़ा है। मजदूरों की तरफ से पैरवी कर रहे एडवोकेट धीरजसिंह पवार ने बताया कि यह आवेदन एक फर्म की ओर से आया है। इसमें कहा है कि इस फर्म को भी हुकमचंद मिल प्रबंधन से उधारी लेना है। जब तक इस आवेदन पर आदेश नहीं हो जाता तब तक सुनवाई लंबित रहेगी। ऐसे में मजदूरों का इंतजार कितना लंबा होगा यह कहना मुश्किल है।
मिल के मजदूर 32 वर्ष से न्याय मिलने का इंतजार कर रहे हैं। 12 दिसंबर 1991 को मिल प्रबंधन ने हुकमचंद मिल पर ताले लगा दिए थे। उस वक्त वहां 5895 मजदूर काम करते थे। अचानक मिल बंद होने से इन मजदूरों के सामने रोजीरोटी का संकट खड़ा हो गया था। उनका बकाया भुगतान भी अटक गया। इसके बाद से ही मजदूर न्यायालयों के चक्कर काट रहे हैं। न्यायालय ने वर्षों पहले मुआवजा भी तय कर दिया था लेकिन वह मजदूरों को नहीं मिला।
हाल ही में इंदौर नगर निगम और मप्र गृह निर्माण मंडल ने मिल की जमीन पर संयुक्त रूप से आवासीय और व्यवसायिक प्रोजेक्ट प्रस्तावित किया जिसके बाद मजदूरों को भुगतान मिलने की उम्मीद जागी लेकिन मजदूरों के बकाया भुगतान पर ब्याज को लेकर बात उलझ रही है।