जिसके जीवन में धर्म नहीं वो पुण्य संग्रह नहीं कर सकता – पं. चेतन पाण्डेय
देवास । जीवन के जिस क्षेत्र में आगे बढऩा चाहते हो तो उस विधा के ज्ञानी के साथ रहना होगा। इसी तरह अध्यात्म औरभक्ति वो ही प्राप्त कर सकता है जिसने श्रेष्ठ गुरू का सानिध्य प्राप्त किया हो। गुरू ही जीवन को श्रेष्ठ रूप प्रदान कर सकता है। धन से समृद्धि प्राप्त होती है तो धर्म से श्रेष्ठता प्राप्त होती है। जहां सत्य, तपस्या, दया और दान ये चार तत्व होते है वहां धर्म की नींव बनती है। धन और धर्म का अद्भुद संयोग है। पुरूषार्थ से कमाया धन जब धर्म में खर्च होता है तो उस धन से पुण्य में वृद्धि होती है। जिसके जीवन में धर्म नहीं वह पुण्य संग्रह नहीं कर सकता। संग्रहित पुण्य ही समृद्ध बनाता है। यह आध्यात्मिक विचार जागृति परिसर निमाड नगर में चल रही श्रीमद भागवत कथा में भागवताचार्य पं.चेतन पाण्डेय चित्रकूट धाम ने कहे।