कोरोना के बाद बढ़ रही संस्कृत के प्रति रुचि

विद्यालयों की संख्या भी बढ़ी, करवा रहे आनलाइन-आफलाइन कोर्स,
इंदौर में संस्कृत भाषा में वेदों की ऋचाएं बोलते हैं नन्हें- मुन्ने

इंदौर। अहिल्या देवी की नगरी इंदौर में इन दिनों ब्रह्ममुहूर्त में वेदों की ऋचाएं गूंज रही हैं। नन्हें – नन्हें बालक गुरुकुलों में सनातनी वेशभूषा में अलग-अलग ग्रंथों पर चर्चा करके भी सनातन का सत्व समझने का प्रयास कर रहे हैं। देखने में आया है कि कोरोना संक्रमण के बाद सनातन संस्कृति से परिचित होने की ललक बढ़ी है। इसके चलते शहर में संस्कृत भाषा के प्रति लोगों का रुझान भी खासा बढ़ रहा है।
परिणामस्वरूप शहर में संस्कृत विद्यालयों की संख्या भी बढ़कर 20 से अधिक हो चुकी है। इन विद्यालय में दो हजार विद्यार्थी शास्त्रों का अध्ययन और कर्मकांड की शिक्षा ले रहे हैं। इसके साथ ही संस्कृत भारतीय जैसी संस्था द्वारा संचालित आनलाइन कोर्स भी अभिभावक अपने बच्चों को करवा रहे हैं।
संस्कृत पठन-पाठन से जुड़े लोग बताते हैं कि संस्कृत का अध्ययन करने वाले छात्रों की संख्या लगभग पांच हजार है। आईआईटी, आईआईएम वाले इस शहर में जहां कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कार्यालय हैं, अनेक पांच सितारा होटलें हैं और सैकड़ों ब्रांड हैं, वहीं इस आधुनिक शहर के दिल में संस्कारों की पाठशाला आज भी पूरे गौरव के साथ लगती है।
अंग्रेजी के पीछे भागती बच्चों की जिंदगी के बीच संस्कृत के श्लोक और वेदों की वाणी की शिक्षा आज भी यहां दी जा रही है। शहर की भावी पीढ़ी को अपने सनातन धर्म से जोड़ने का कार्य यहां के गुरुकुल कर रहे हैं। इनमें श्रीविद्याधाम, हंसदास मठ, वीर बगीची, इस्कान और लोकमान्य नगर के समीप स्थित आयुर्वेदिक ब्रह्मचर्य आश्रम एवं संस्कृत विद्यालय का स्थान विशेष है। इस्कान के निपानिया स्थित गुरुकुल में 25 से अधिक छात्र अध्ययन कर रहे हैं।

देवी आराधना स्थल पर संस्कृत और संस्कृति दोनों ही

श्रीश्री विद्याधाम केवल ललिता महात्रिपुरसुंदरी के आराधना स्थल के रूप में ही नहीं जाना जाता, अपितु यहां ऐसा विद्यालय भी लगता है, जो दशकों से शास्त्र, कर्मकांड, वेद, संस्कार आदि की शिक्षा दे रहा है। वर्ष 1980 में मंदिर के अधिष्ठाता गिरिजानंद सरस्वती ने श्री गिरिजानंद वेद वेदांग विद्यापीठ की नींव दो बटुकों की शिक्षा का दायित्व लेते हुए रखी थी। समय के साथ यह बढ़ता गया और वर्तमान में यहां 180 विद्यार्थी शिक्षा ले रहे हैं। अपनी शिक्षा पूर्ण होने तक ये यहीं रहते हैं और जब यहां से विदा लेते हैं तो बटुक से शास्त्री, आचार्य या विद्विभूषण बनकर निकलते हैं।

बटुक, संस्कृत और कर्मकांड

हंसदास मठ में पांच वर्ष पहले संस्कारों की वह पाठशाला शुरू हुई, जहां प्राचीन और आधुनिक शिक्षा पद्धति का मिला-जुला रूप नजर आता है। यहां हंसपीठाधीश्वर महंत रामचरणदास के निर्देशन में श्री हंसदास विद्यापीठ आरंभ की गई। वर्तमान में यहां 60 बटुक अध्ययन कर रहे हैं। बटुकों को घर जाने का अवसर उसी तरह मिलता है, जैसे शहर के बड़े स्कूल के छात्रावासों में रहने वाले विद्यार्थियों को। पवनदास महाराज कहते हैं कि यहां रह रहे बटुकों को केवल संस्कृत, कर्मकांड, वेद आदि की शिक्षा ही नहीं दी जाती, अपितु उन्हें अकादमिक शिक्षा भी दी जाती है।

वीर बगीची में संस्कृत की ध्वजा भी

वीर बगीची की ख्याति यूं तो हनुमान मंदिर के रूप में है, लेकिन यहां धर्म की ध्वजा के साथ शिक्षा और संस्कार की ध्वजा भी लहरा रही है। यहां भारत की उस प्राचीन परंपरा का संचालन हो रहा है, जिसके माध्यम से अगली पीढ़ी को अध्यात्म, धर्म, कर्मकांड, शास्त्र, वेद-पुराण आदि से जोड़ा जा सकता है। यहां संचालित होने वाले ओंकारानंद संस्कृत महाविद्यालय में कई बटुकों को संस्कृत, संस्कृति और संस्कारों की शिक्षा दी जा रही है। यहां ब्रह्ममुहूर्त में जागरण तथा सूर्योदय के साथ शिक्षा देने का मंगल क्रम आरंभ होता है।

श्री आयुर्वेदिक ब्रह्मचर्य आश्रम में बटुकों को यज्ञ, पूजन की शिक्षा

श्री आयुर्वेदिक ब्रह्मचर्य आश्रम
लोकमान्य नगर के समीप बसे श्री आयुर्वेदिक ब्रह्मचर्य आश्रम एवं संस्कृत विद्यालय में बटुकों को पूजा पद्धति एवं हवन आदि की सैद्धांतिक शिक्षा के साथ-साथ प्रायोगिक शिक्षा भी दी जा रही है। वर्तमान में यहां 32 बटुक निवास कर रहे हैं, जिन्हें बढ़ाकर भविष्य में 120 बटुक किए जाने की योजना है। ट्रस्ट के अध्यक्ष महेशचंद्र शास्त्री एवं मंत्री पुरुषोत्तमदास पसारी ने बताया कि शास्त्री की उपस्थिति में इन विद्यार्थियों को वे सभी शास्त्रोक्त श्लोक कंठस्थ कराए जा रहे हैं, जिनसे देवी आराधना की जाती है।

संस्कृत के प्रति बढ़ रही रुचि

संस्कृताचार्य आचार्य पिंगलेश कचौले बताते हैं कि देश में संस्कृत के प्रति लोगों का रुझान लगातार बढ़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में संस्कृत का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी है। पिछले छह माह में इंदौर में दो नए संस्कृत विद्यालय शुरू हुए। इसमें मठ-मंदिर और आश्रम द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा रही है। इसके साथ ही स्कूलों में संस्कृत पढाई जा रही है। लोग आनलाइन और आफलाइन भी संस्कृत सीख रहे हैं। इसके पीछे माता-पिता की अपने बच्चों को सनातन संस्कृति से जोड़े रखने की भावना है। इसके अलावा संस्कृत के अभ्यास से भाषा भी शुद्ध होती है। हमारे धर्मग्रंथ के मूल स्वरूप के अध्ययन के लिए भी संस्कृत भाषा का ज्ञान आवश्यक है।
हम लोगों को संस्कृत भाषा में चर्चा करते देख कई बार गुरुकुल आने वाले भक्त आश्चर्य करते हैं लेकिन उन्हें हमे देखकर अच्छा लगता है। संस्कृत के अध्ययन के लिए अनुशासित दिनचर्या आवश्यक है। हमारी दिनचर्या सुबह 4 बजे शुरू होती है। इसमें तय समय सारणी अनुसार दिनचर्या और अध्ययन होता है।