इंदौर में सबसे ज्यादा अंगदान के बाद भी देश में मप्र काफी पीछे

इंदौर।  भले ही इंदौर में कई बार ग्रीन कारिडोर बनाए जाने को लेकर शहरवासियों में अंगदान के प्रति गर्व का भाव हो, किंतु सच यह है कि हम एक प्रदेश के तौर पर अंगदान के मामले में बहुत पीछे हैं। अंगदान में मध्य प्रदेश का स्थान देश में 15वां है। यह तब है जबकि प्रदेश की आबादी अन्य राज्यों से कहीं अधिक है। हमसे आगे तो तेलंगाना, दिल्ली, बंगाल जैसे छोटे प्रदेश भी हैं। यहां हम इसलिए पिछड़े हुए हैं, क्योंकि लोगों में जागरूकता का अभाव है। हालांकि, इंदौर प्रदेश को अंगदान के मामले में पहला दर्जा दिलाने के लिए प्रयासरत है और यहां राज्य में सबसे अधिक अंगदान होते हैं, किंतु यह संख्या राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है। हम जागरूक हो रहे हैं, किंतु हमें इसे और अधिक बढ़ाना होगा।इंदौर ही प्रदेश वह शहर है, जहां पूरे राज्य के कुल अंगदान में से 80 प्रतिशत अंगदान होते हैं। यहां नौ अस्पतालों में ट्रांसप्लांट की सुविधा है। साथ ही त्वचा दान के मामले में इंदौर देश में दूसरे स्थान पर है। इंदौर का लक्ष्य अब देश में सर्वाधिक अंगदान करने वाला शहर बनने का है। इसके लिए विभिन्न संस्थाएं और व्यक्तिगत स्तर पर लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि इन प्रयासों को बहुत तेजी से बढ़ाने की आवश्यकता है।
राज्य के नेतृत्वकर्ता हैं हम
स्टेट आर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट आगेर्नाइजेशन (सोट्टो) की सलाहकार समिति के सदस्य संदीपन आर्य बताते हैं- मां अहिल्या की नगरी इंदौर के लोग परोपकारी हैं, इसीलिए मध्य प्रदेश में 80 से 90 प्रतिशत अंगदान अकेले इंदौर में होते हैं। यहां चोइथराम स्किन बैंक में पिछले सात वर्षों में करीब 760 त्वचा दान हुए हैं। दान में प्राप्त त्वचा को देश के अलग-अलग शहरों में भेजा गया है। एक व्यक्ति से प्राप्त टिशू कई लोगों के शरीर में ट्रांसप्लांट में किया जा सकता है। इसके अलावा इंदौर की एक और बड़ी बात है कि यहां कोरोना काल के पहले प्रतिवर्ष अंगदान के लिए केवल 30 लोगों को अनुमति दी जाती थी। किंतु फिर स्थिति बदली और वर्ष 2022 में 248 लोगों को अंगदान की अनुमति दी गई। इंदौर में नौ अस्पताल हैं, जहां अंग ट्रांसप्लांट की सुविधा उपलब्ध है।
हालांकि, देश में अंगदान के लिए प्रदेश को प्रथम स्थान पर पहुंचाने के लिए स्टेट आर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट आगेर्नाइजेशन द्वारा प्रदेश के अलग-अलग शहरों में जागरूकता फैलाने का काम किया जा रहा है। यह सही है कि हमें अभी बहुत प्रयास करने होंगे।आर्गन डोनेशन कोआर्डिनेटर जीतू बगानी ने बताया कि बीते दस वर्षों में नेत्रदान करने वालों की करीब 4500 आंखें दान ली जा चुकी हैं। हमें किसी भी वक्त कहीं से सूचना मिलती है तो हम तुरंत वहां तुरंत पहुंचते हैं और नेत्र का दान लेते हैं। हमारा प्रयास है कि हर उस व्यक्ति को नेत्र मिले, जो अभी दुनिया नहीं देख पा रहा है। किसी व्यक्ति को जीवन में दोबारा रोशनी मिले, इससे बड़ी बात क्या हो सकती है। जब लोग आम लोगों की तरह दुनिया को देख पाते हैं, तो उनके चेहरे पर खुशी देखकर हमें भी खुशी मिलती है। शहर में नेत्रदान के लिए लोगों में जागरूकता काफी बढ़ी है। यहां प्रतिमाह करीब 100 नेत्रदान होते हैं। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर इंदौर को अपना योगदान और बढ़ाना होगा।
मध्य प्रदेश पिछड़ा, इंदौर बेहतर कर रहा
अंगदान के मामले में मध्य प्रदेश की स्थिति राष्ट्रीय स्तर पर बहुत पिछड़ी हुई है, किंतु इंदौर ने राज्य की स्थिति को किसी तरह संभाल रखा है। इंदौर में राज्य के सर्वाधिक अंगदान होते हैं। हालांकि इसके पीछे अंगों को दान में ले सकने लायक चिकित्सकीय स्थिति, सुविधाजनक अस्पताल व अन्य तमाम शहरों से उपचार के लिए मरीजों का इंदौर आना भी इसमें महत्वपूर्ण कारक हैं। वर्ष 2018 में अंगदान के मामले में सबसे तेजी से बढ़ने वाला शहर इंदौर था। यहां दस साल में करीब 12,500 नेत्रदान, 760 त्वचा दान और 300 देह दान हुए हैं। साथ ही पिछले आठ वर्षों में 51 बार ग्रीन कारिडोर बनाया गया है। इस वजह से 300 लोगों को नई जिंदगी मिली है। दरअसल, ब्रेनडेड मरीजों के अंगों को दान में लेकर उन्हें विभिन्न अस्पतालों तक पहुंचाने के लिए ग्रीन कारिडोर बनाया जाता है।इन अंगों का हो सकता है दान
अंगदान के लिए इंदौर में अब पहले से काफी बेहतर सुविधाएं हैं। साथ ही इस महादान के प्रति लोगों में जागरूकता भी बढ़ी है। इसके चलते यहां शरीर के विभिन्न हिस्सों के साथ लोग पूरी देह का दान भी कर रहे हैं। अगर आप चाहें तो जीवित रहते हुए यह सहमति दे सकते हैं कि मृत्यु के बाद मेरे इन अंगों का दान ले लिया जाए। दान किए जा सकने वाले अंगों में कार्निया, हृदय के वाल्व, हड्डी, त्वचा जैसे ऊतकों को प्राकृतिक मृत्यु के बाद दान किया जा सकता है। हृदय, यकृत, गुर्दे, फेफड़े और अग्नाशय जैसे अन्य महत्वपूर्ण अंगों को केवल ब्रेनडेड के मामले में ही दान किया जा सकता है।
23 वर्ष पूर्व हुआ था पहला अंगदान
इंदौर में पहला अंगदान जो हुआ था, उसके पीछे एक माता-पिता का अपने बेटे के अंगों का दान करने का निर्णय था। यह महादान 23 वर्ष पहले 24 अप्रैल 2000 को हुआ था। विजय नगर निवासी बैंक अधिकारी दिलीप मेहता के 14 वर्षीय इकलौते पुत्र मयंक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। बाद में उपचार के दौरान डाक्टरों ने उन्हें ब्रेनडेड घोषित कर दिया था। उस दुखद समय में भी परिवार ने दिल को मजबूत करके पुत्र के अंगों का दान करने का निर्णय लिया था। इसके बाद मयंक की दोनों किडनियां, त्वचा और आंखें दान की गईं।