4 सितंबर को निकलेगी नीलकण्ठेश्वर महादेव की शाही सवारी 55 साल पहले हाथ ठेले पर निकलती थी सवारी, अब शाही ठाठ से निकलती है

सुसनेर ।    नगर के अधिनष्ठता भगवान नीलकठेश्वर एवं ओकारेश्वर महादेव मंदिर का डोला आज क्षैत्र के भव्य धार्मिक आयोजनों में शामिल नहीं है बल्कि अब यह हमारी जीवनशैली में शामिल हो चूका है। वर्षों पहले से ही भादौ के पहले सोमवार को निकलने वाली बाबा नीलकण्ठेश्वर महादेव की शाही सवारी का स्वरूप समय के साथ बदल गया और धीरे-धीरे सवारी में शामिल होने वाले श्रद्वालुआें का कारवां भी बढ़ता गया। जिसके चलते सवारी ने आज काफी बडा रूप धारण कर लिया है। प्रतिवर्ष सावन सामप्ति के बाद भादौ के पहले सोमवार को निकलने वाली इस शाही सवारी की शुरूआत कई वर्षाे पहले नगर के चुनिंदा लोगो के द्वारा छोटी लकड़ी की बनी पालकी में की गई थी। जों दो-चार ढोल और मशालो के साथ निकाली जाती थी। कुछ समय बाद नीलकण्ठेश्वर महादेव के मुखौटे को हाथ ठेले पर विराजित कर निकालना शुरू किया गया। जो अब उज्जैन महाकांल की तर्ज पर बनी पालकी में पूरे शाही ठाट-बाट से निकलती है। शिवभक्त मंडल के कैलाश नारायण बजाज, जगदीश कालु उपाध्याय के अनुसार नगर में शाही सवारी की शुरूआत करीब 55 वर्ष पूर्व कुछ लोगो के द्वारा की गई थी। यह सिलसिला कई वर्षो तक चला इसके बाद शाही सवारी का बीडा िशवसेना के युवाओं ने उठाया और उनके द्वारा प्रतिवर्ष शाही सवारी की पालकी निकालना शुरू की गई। जो कि सावन के प्रत्येक सोमवार पर अखाडो और झांकियो के साथ निकाली जाती थी। अब ये शाही सवारी वर्ष 1990 से शिवभक्त मंडल के तत्वाधान में प्रतिवर्ष भादौ मास के पहले सोमवार को निकाली जा रही है।
बाधाओं को पार कर बढ़ता गया कारवां
शिवभक्त मंडल के कालू उपाध्याय सहित अन्य सदस्यों के अनुसार उस समय जब नगर में शाही सवारी निकाली जाती थी। तो सवारी के चल समारोह मे गिनती के 15-20 लोग ही शामिल होकर महादेव को नगर भ्रमण के लिए लेकर आते थे। चलसमरोह में श्रृद्वालुओ की कम संख्या और नगरवासीयो की अरूची को भगवान नीलकण्ठेश्वर का अपमान मानते हुए नगर के एक बुजुर्ग ने इन युवाओ को ताने देकर सवारी नही निकालने का कह दिया था। बुजुर्ग के इस ताने ने युवा में उर्जा भरने का काम किया और उसके बाद से ही शाही सवारी का स्वरूप पूरी तरह बदल गया। इस सफर में कई उतार चढ़ाव भी आए। लेकिन अधिनष्ठता की महिमा ऐसी रही की करवां बढ़ता गया। सवारी बैण्ड बाजों व ढोल ढमाकों के साथ आकर्षक झांकियों और पूरे लाव लश्कर के बीच निकलना शुरू हो गई। सवारी का रूप बड़ा होता गया और 15-20 लोगो से आज 6-7 हजार श्रद्वालुओं का कारवा बन गया। नगरवासी भी पूरी आस्था और विश्वास के साथ बाबा का पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत व पूजन करते है।
देवी अहिल्याबाई ने की थी मंदिर की स्थापना
इन्दौर रियासत की महारानी देवी अहिल्याबाई ने तहसील में कई जगहो पर शिव मंदिरों का निर्माण कराया था। इन्हीं में से एक नगर के मेला ग्राउण्ड क्षेत्र में स्थित नीलकण्ठेश्वर महादेव मंदिर भी है। यहां पर कई मंदिर भी है। इस कारण से इस जगह को पुराने समय से ही शिव का बाग कहा जाता है। नगर परिषद द्वारा इस स्थान पर वार्षिक रामनवमी मेला आयोजित किए जाने के कारण इस जगह को मेला ग्राउंड के नाम से भी जाना जाता है। कंठाल नदी के किनारे पश्चिम दिशा की ओर स्थित यह मंदिर वर्तमान में धर्मस्व विभाग के अधीन होकर प्रशासन की उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। बोलबम कावड यात्रा संघ के द्वारा विगत 18 वर्षो से नगर के कावड यात्री इसी नीलकंठेश्वर मंदिर में महारूद्राभिषेक कर कंठाल नदी का जल ले जाकर 300 किलोमीटर की पदयात्रा कर ओंकारेश्वर महादेव का अभिषेक करते है।
प्रतिवषार्नुसार इस वर्ष भी शिव भक्त मंडल के तत्वाधान में निकाली जाने वाली शाही सवारी में 4 सितंबर भादौ के पहले को नीलकंठेश्वर महादेव पुरे लाव लश्कर के साथ नगर का हाल जानने के लिए निकलेंगे। इस दिन सुबह 5 बजे नीलकंठेश्वर महादेव का रूद्राभिषेक व आकर्षक श्रृंगार किया जाएगा। उसके पश्चात श्रृंगार आरती होगी। साढे 11 बजे महादेव के मुखौटे की पुजा अर्चना पालकी में विराजमान किया जाएगा। तथा साढे 12 बजे परम्परानुसार चौष्टी माता मंदिर में महाआरती कर महादेव की शाही सवारी भुतो की बारात, ढोल-ताशो व आकर्षक झांकीयो के साथ प्रारंभ होगी।

चित्र- 2 सुसनेर 1 कई वर्षो पहले हाथ ठेले पर निकाली जाने वाली सवारी का।