रुनिजा : पुत्र स्वस्थ जीवन एवं लंबी उम्र के कामना को लेकर माताओं ने गाय व बछड़े की पूजा कर रखा बछ बारस का व्रत
रुनिजा । हमारे देश मे मनायव जाने वाले हर उत्सव , व्रत समाज धार्मिक महत्व तो होता ,इनका वैज्ञानिक महत्व के साथ समाज को सन्देश देते ऐसा ही एक व्रत है बछ बारस का इस व्रत को मनाने का उद्देश्य गाय व बछड़े का महत्त्व समझाना है। यह दिन गोवत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। बछ बारस का व्रत कृष्ण जन्माष्टमी के चार दिन बाद आता है । कृष्ण भगवान को गाय व बछड़ा बहुत प्रिय थे। तथा गाय में सैकड़ो देवताओं का वास माना जाता है। गाय व बछड़े की पूजा करने से कृष्ण भगवान का , गाय में निवास करने वाले देवताओं का और गाय का आशीर्वाद मिलता है जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है ऐसा माना जाता है।
बछ बारस के दिन महिलायें बछ बारस का व्रत रखती है। यह व्रत सुहागन महिलाएं सुपुत्र प्राप्ति और पुत्र की मंगल कामना के लिए व परिवार की खुशहाली के लिए करती है। गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है। इस दिन गाय का दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे दही , मक्खन , घी आदि का उपयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा गेहूँ और चावल तथा इनसे बने सामान नहीं खाये जाते ।
भोजन में चाकू से कटी हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करते है। इस दिन अंकुरित अनाज जैसे चना , मोठ , मूंग , मटर आदि का उपयोग किया जाता है। भोजन में बेसन से बने आहार जैसे कढ़ी , पकोड़ी , भजिये आदि तथा मक्के , बाजरे ,ज्वार आदि की रोटी तथा बेसन से बनी मिठाई का उपयोग किया जाता हैं।
शास्त्रो के अनुसार इस दिन गाय की सेवा करने से , उसे हरा चारा खिलाने से परिवार में महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा परिवार में अकालमृत्यु की सम्भावना समाप्त होती है। बछ बारस की पुत्र की कामना रखने वाली तथा पुत्र की माताएं सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर दूध देने वाली गाय और उसके बछड़े को साफ पानी से नहलाकर गाय और बछड़े को नए वस्त्र ओढ़ाती है ।फूल माला उनके सींगों को सजाती। गाय और बछड़े की पूजा कर उन्हे भीगे हुए अंकुरित चने , अंकुरित मूंग , मटर , चने के बिरवे , जौ की रोटी आदि खिलाती । गौ माता के गोबर का भी पूजन करती है इसके बाद बछ बारस की कथा सुनती। रुनिजा सहित आस पास के ग्रामो गाय व बछड़े की पूजा करने महिलाये कतार में लगी रही ।गाय बचढेकी पूजा जे भेस के दूध से चाय बनाकर पी। तथा चावल , बेसन , मक्का , ज्वार की रोटी का सेवन किया।