महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का राष्ट्रीय कवि सम्मेलन बना यादगार हिंदी समूचे विश्व के माथे की बिंदी- राज्यपाल  शिवप्रताप शुक्ल

मुंबई । हिमाचल प्रदेश के महामहिम राज्यपाल शिवप्रताप शुक्ल का मानना है कि हाल ही में सम्पन्न जी-20 सम्मेलन के बाद यह सत्यापित हो गया है कि हिंदी भाषा भारत की ही नही, वरन समूचे विश्व के माथे की बिन्दी है। उन्होंने कहा कि यही वह भाषा है, जिसका व्याकरण पूर्णरूपेण पवित्र और वैज्ञानिक है।  शुक्ल हिंदी दिवस के मौके पर  महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई एवं श्रुति संवाद सहित्य कला अकादमी, मुंबई के संयुक्त तत्वावधान में वाशी, नवी मुंबई के विष्णु दास भावे नाट्यगृह में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन ‘हिंदी हैं हम’ में मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
राज्यपाल  शुक्ल ने कहा कि दस हजार से भी अधिक शब्दों के भंडार से परिपूर्ण हिंदी भाषा को विश्व के 136 देशों में बोलचाल की सम्पर्क भाषा के रूप में दैनिक व्यवहार में प्रयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि देश की आज़ादी के आंदोलन का सूत्रपात जिन -जिन राज्यों से हुआ, उनमें जन जागरण के नारों को गति और सम्बल देने के लिए हिंदी भाषा का ही इस्तेमाल हुआ, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हिंदी की पैरोकारी तो दूर, जहाँ- तहाँ  हिंदी बोलने और सुनने में भी लोगों को मानो उबकाई छूटती है। उन्होंने कहा कि राजनीति से प्रेरित ऐसे कलुषित भाव पिछले कुछ दशकों से उभर कर सामने आये हैं, जो काफी चिंताजनक हैं।  शुक्ल ने कहा कि आज देश के अधिकांश भू भाग की सम्पर्क भाषा हिंदी है। ऐसे में यह राजभाषा तक ही सीमित रह जाये, तो इससे बड़ी बिड़म्बना और क्या होगी ?  अत: इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना ही चाहिये।
राज्यपाल ने कहा कि देश का सर्वांगीण विकास अपनी भाषा को आत्मसात करने पर ही होता है। इजरायल आदि देशों ने अपनी आज़ादी के तुरंत बाद ही अपनी भाषा को ही अपनी आन-बान-शान माना और उस पर अमल भी किया, लेकिन हम ऐसा नहीं कर सके।  शुक्ल ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के देश- विदेश में लगातार हो रहे हिंदी भाषा के परिष्कृत और प्रभावी सम्भाषणों ने हिंदी की लोकप्रियता को तेज़ी से आगे बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी जी ने संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में हिंदी के ओजस्वी भाषण की जो अलख जगाई थी, उसे  मोदी जी सतत अपने नायाब अंदाज़ में आगे बढ़ा रहे हैं। सनातन धर्म पर अनाप-शनाप बोलने वालों को आड़े हाथों लेते हुए, शुक्ल ने कहा कि सफलता की पराकाष्ठा पर पहुॅंचे ब्रिटिश प्रधानमंत्री से कुछ सीखो भाइयों, जो देवताओं के समक्ष साष्टांग प्रणाम करते हैं। इससे पहले बोलते हुए वरिष्ठ भाजपा  विधायक  गणेश नाईक और विधायक  मंदा म्हात्रे ने हिंदी भाषा के और अधिक प्रचार- प्रसार की ज़रूरत पर बल दिया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और यादगार कवि सम्मेलन से हुई, जिसमें  आनंद सिंह और ज़्यादातर कवियों के तरकश से व्यंग्य के करारे तीर छूटे। लखनऊ से पधारे कवि डॉ. सुरेश ने ‘आँसू पी-पी कर मुस्काना, गीत सुनाना खूब जिये, कश्ती और किनारा कैसा, लहर-लहर में डूब लिये’ पंक्तियाॅं सुनाकर समां बांधा और दर्शकों की खूब तालियाॅं बटोरीं।
अंत में मोर्चा सम्भाला सुप्रसिद्ध गीतकार  शेखर अस्तित्व ने, जिन्होंने व्यवस्था पर व्यंग्य बाणों से तीक्ष्ण वार किये और खूब वाहवाही लूटी- ‘तीर वे कमान हो गये, कैसे बेजुबान हो गये ? सिर्फ एक पान के लिए लोग पीकदान हो गये।’ इससे पहले कवयित्री सुमिता केशवा और  प्रमिला शर्मा ने भी काव्य पाठ किया।  अरविंद शर्मा ‘राही’ के कुशल संचालन में सभागार खचाखच भरा रहा। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे ने अपने स्वागत भाषण में अकादमी की प्रमुख गतिविधियों की जानकारी दी। इस अवसर पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता  प्रेम शुक्ल, डॉ. संजीव नाईक, आचार्य पवन त्रिपाठी, डॉ. वागीश सारस्वत,  ए पी सिंह, पूर्व आई ए एस अधिकारीजगन्नाथ सिंह,  श्याम शर्मा के अलावा कई  गण्यमान्य व्यक्ति मौजूद थे।  राजेश राय और उनके सहयोगियों द्वारा विभिन्न अतिथियों का स्वागत और सम्मान किया गया। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के सचिव  सचिन निंबालकर ने सभी का आभार व्यक्त किया।