महाकाल से माता पार्वती की निकली सवारी

उज्जैन । श्रावण, भादौ, कार्तिक और अगहन मास में भगवान महाकाल की सवारियां तो निकलती ही है लेकिन वर्ष में एक बार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दूज पर यानी आज सोमवार को महाकाल मंदिर से माता पार्वती की भी सवारी निकली । यह सवारी उमा-सांझी उत्सव के समापन पर निकाली जाती हैं। सवारी शाम 4 बजे शुरू होकर नगर भ्रमण के लिए निकली । महाकाल मंदिर प्रबंध समिति के सदस्य एवं पुजारी विजय पुजारी और सहायक प्रशासक ने बताया कि मालवा की लोक संस्कृति एवं परम्परानुसार महाकाल मंदिर में उमा-सांझी का उत्सव होता है। इसमें पांच दिनों तक प्रतिदिन उमा यानी माता पार्वती का पूजन- अर्चन कर पंडे-पुजारीगण सभामंडप में रंगोली बनाते हैं। इस रंगोली का विसर्जन हेतु माता पार्वती खुद चांदी की पालकी में सवार होकर शिप्रा के तट तक जाती है।

नाव में बैठकर पंडे-पुजारी शिप्रा नदी में विसर्जित करते हैं रंगोली उमा-सांझी की सवारी नगर भ्रमण करते हुए शिप्रा तट पर पहुंचती है। यहां पूजन के पश्चात नाव में बैठकर पंडे-पुजारीगण रंगोली व जवारे का विसर्जन करने बीच नदी में जाते हैं। इसके बाद सवारी वापस मंदिर पहुंचकर समाप्त होती है सवारी में पुलिस बैंड, घुड़सवार दल, भजन मंडली के साथ चांदी की पालकी में माता पार्वती विराजित रहती है।

माता पार्वती की सवारी का रूट महाकाल की सवारी से अलग माता पार्वती की सवारी का रूट महाकाल की सवारी से बिल्कुल अलग होता है। महाकाल की सवारी मंदिर से गुदरी होकर कहारवाड़ी से शिप्रा के रामघाट जाती है। और यहां पर पूजन के पश्चात कार्तिकचौक से होकर गोपाल मंदिर आदि नगर का भ्रमण करती है जबकि माता पार्वती की सवारी शाम 4 बजे सभा मंडप में पूजन के पश्चात शुरू होकर मंदिर से सीधे महाकाल घाटी, तोपखाना, दौलतगंज चौराहा, कंठाल चौराहा, सराफा, छत्रीचौक, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार, गुदरी चौराहा होते हुए बक्षी बाजार, कार्तिक चौक से होकर रामानुजकोट होते हुए शिप्रा तट रामघाट पहुंगी। यहां सवारी पुनः कहारवाडी, बक्षी बाजार, महाकाल रोड होते महाकाल मंदिर पहुंचकर समाप्त हुयी ।