चौराहों से चौपाल तक एक ही चर्चा…अगली सरकार किसकी ? अगला विधायक कौन ?
दैनिक अवंतिका(उज्जैन) दीपावली के त्यौहार के साथ आमजन का मेल मिलाप बढ गया है। अवकाश के दौरान चर्चाओं में दो ही विषय ज्यादा देखे जा रहे हैं। पहला क्रिकेट विश्व कप एवं दुसरा मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव। दोनों विषय अब शहरी चौराहों और ग्रामीण चौपालों की आम चर्चा में हैं। क्रिकेट का तो सीधे सीधे भारत की जीत का ही निर्णय होता है। इसके विरूद्घ चुनाव को लेकर खासी राजनीतिक चक्कलस हो रही है।इसमें प्रत्याशियों की पूरी बखिया उधेडी जा रही है।उज्जैन उत्तर हो या दक्षिण या फिर जिले के 7 विधानसभा क्षेत्र ही नहीं पूरे प्रदेश में चुनावी माहौल गर्माने लगा है। मैदान में उतर चुके प्रत्याशियों की तुलनात्मक चर्चा जोर शोर से हर क्षेत्र में शुरू हो चुकी है। आम लोग कयास लगा रहे हैं कि इस बार किसकी सरकार बनेगी ? किसके सिर पर जीत का सेहरा बंधेगा और कौन विधायक बनेगा ? इस तरह की चर्चाएं चौराहों के साथ ही महिला मंडल और आमजन की जुबान पर उतर आई है। हर समय जैसे ही चार-पांच लोग किसी जगह एकत्र होते हैं, सिर्फ राजनीतिक बातें होती है। चुनावी माहौल धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगा है। शहर के साथ ही ग्रामीण इलाकों की चौराहों चौपालों पर यह अब आम चर्चाओं में है। शहर के प्रमुख चौराहे हों , पान की दुकानें हो या फिर कहें कि देहात के मंदिर के औटले और बडे बुजुर्गों की चौपाल अब देर तक राजनीतिक बातों की चक्कलस से सजने लगी हैं।चौराहों की एवं चौपालों की चर्चा से कई मतदाता प्रभावित होते हैं। ऐसे में यहां की चर्चाएं प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला बदल देती हैं। चुनावी सरगर्मियों के साथ ही शहरी चौराहों एवं देहाती चौपालों पर राजनैतिक चर्चाओं का खुमार चढता और उतरता है। शहर में रात को प्रमुख चौराहों और पान की दुकानों पर यह चर्चाएं आम हैं तो देहात में दिन छिपते ही गांव के बुजुर्ग, नौजवान मंदिर के ओटले और चौपाल पर बैठकर इन चर्चाओं को अंजाम देते हैं। राजनीतिक चर्चा जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आती जाएगी। वैसे-वैसे और बढ़ जाएगी। धीरे-धीरे चौराहों और चौपाल से चली चर्चा की हवा बनने लगेगी और ये हवा प्रत्याशियों को प्रभावित करने लगेगी । इसके चलते प्रत्याशी भी अपने समर्थकों के जरिये चुनावी गणित का आंकलन करने के लिए इन चर्चाओं में शामिल किए जाते हैं। इसके लिए खास सिपहसालारों को तैयार कर चौराहों की चर्चा के लिए छोड़ा जाता है। इनका एक ही काम रहता है कि वे मतदाता में चल रही हवा को प्रत्याशी तक पहुंचाएं । एक तरह से चौराहों और चौपालों के रुझानों की टोह लेकर अपनी पार्टी और प्रत्याशी के लिए धरातल का सर्वे किया जाता है। पूर्व में सामने आता रहा है कि मतदान से पूर्व रात्रि को इस तरह के चौराहे और चौपालें एक ही रात में काफी कुछ तब्दील कर देती हैं। खास तो यह है कि शहरी चौराहों की चर्चा में प्रत्याशियों की पुरी बायोग्राफी नहीं रखी जाती है जबकि ग्रामीण चौपालों पर प्रत्याशी के ए- टू -झेड खोल कर रख दिए जाते हैं।