स्टूडेंट्स को एक्जाम वारियर बनाएं
उज्जैन। मूलरूप से एक बच्चा चहकता हुआ पुष्प ही होता है। ईश्वर ने बच्चे को स्फूर्ति व मुस्कुराहट का नायाब तोहफा दिया है। विगत कुछ वर्षो से अभिभावको द्वारा बच्चो के कोमल मस्तिष्क पर एक दबाव डाल दिया गया है।
बहुत अच्छा परिणाम परीक्षा मे लाने के लिए। अभिभावक स्वयं के स्टेटस को लेकर इतने ज्यादा सचेत हो गए हैं कि वे अपने जिगर के टुकडे को मात्र एक दौड़नेवाला घोड़ा समझ बैठे जिसे हर हाल मे घुडदौड जीतना है। मोडिवेटर व शिक्षाविद राहुल शुक्ला के अनुसार बार बार ऐसे पालक अपने बच्चो को अपनी अपेक्षा बताते हैं और फिर दूसरे बच्चो से तुलना करके उसमे हीन भावना पैदा कर देते हैं। आज पैरेंट्स बच्चे को समय तो दे नही रहे कि उससे मित्रवत संबंध रख के उससे बातें शेयर करें और बच्चे के मन की थाह लें। घर सिंगल यूनिट बन गए हैं जहां संवेदना रखनेवाले दादा दादी नदारद हैं बच्चे को गाइडेंस का ठेका कोचिंग क्लासेस को दे दिया जाता है। अब बच्चे पर क्या बीत रही है इससे पालक को कोई सरोकार ही नही होता। बच्चा अलग थलग पड कर जब दुखी होता है तो स्वयं को नितांत अकेला समझकर आत्महत्या का मार्ग चुन लेता है जो बडा ही पीड़ादायक है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने नौनिहालों को समय दें उनके साथ विचार साझा करें उनसे संवेदना रखें। उनके साथ कोई इनडोर गेम खेलें उन्हें सप्ताह मे एक दिन आउटिंग कराएं और हमारे पौराणिक पात्र जैसे भगवान राम, भक्त हनुमान, कृष्ण आदि के चरित्र से सीख लेने की प्रेरणा दें। हमारे जिगर का टुकड़ा इतना सस्ता तो नहीं है कि पढाई या स्टेट्स के नाम पर उसे बलि का बकरा बना दिया जाए। उसको एक्जाम वारियर बनाएं और सीख दें कि सफलता व असफलता दोनो ही का स्वाद सभी ने अपने जीवनकाल मे लिया होता है तो समझने की जरूरत है कि अंधेरे के बाद ही प्रकाश आता है। अच्छे प्रतिष्ठित वैज्ञानिक व नामी महापुरूष भी कभी न कभी असफल हुए हैं। केवल अकेले पढाई मे सफल न होने पर तुम कदापि लूजर नही हो। पालक बच्चो की चहक और मुस्कुराहट उनसे न छीटें जो उनको ईश्वर प्रदत्त है।