खेतों लगी डीपी किसानों के लिए बन सकती है खतरा…इसलिए कृषि विभाग कर रहा है आगाह

नरवाई जलाने वालों पर भी विभाग की नजर]

उज्जैन। जिले के कई किसानों के खेतों में बिजली विभाग की डीपी लगी हुई है वहीं हाईटेंशन लाइन भी गुजर रही है लेकिन यह मौजूदा समय में किसानों के लिए खतरा बन सकती है। लिहाजा कृषि विभाग के अधिकारी और कर्मचारी फील्ड में जाकर किसानों को आगाह कर रहे है। दरअसल अभी खेतों में फसल कटाई का काम चल रहा है और विभाग ने किसानों को यह सलाह दी है कि वे कटाई के दौरान डीपी क्षेत्र से दूर रहकर ही कटाई करें ताकि किसी तरह से खतरा उत्पन्न न हो।

इसी तरह से हाईटेंशन लाइन के यदि तार झूलते दिखाई दे तो भी विभाग को तुरंत ही सूचित करने के लिए कहा गया है। इसके अलावा विभागीय अमला ऐसे किसानों पर भी नजर रख रहा है जो नरवाई जलाने का काम कर है। गौरतलब है कि नरवाई जलाने पर प्रतिबंध है लेकिन इसके बाद भी कतिपय किसानों द्वारा नरवाई जलाने का काम किया जा रहा है। ब्रह्मास्त्र से चर्चा करते हुए कृषि विभाग के डिप्टी डायरेक्टर आरपीएस नायक ने बताया कि विभागीय अमला और संबंधित क्षेत्रों के पटवारियों द्वारा नरवाई जलाने वाले किसानों पर नजर रख रहे है। हालांकि अभी तक किसी किसानों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई है लेकिन खेतों में कटाई करने वाले किसानों को चेतावनी जरूर दी जा रही है। डिप्टी डायरेक्टर श्री नायक ने यह भी बताया कि जिले के कई ऐसे किसान है जिनके खेतों में बिजली विभाग की डीपी लगी हुई है वहीं खेतों में से हाईटेंशन लाइन भी गुजर

रही है। अक्सर सावधानी न रखने के कारण आगजनी की घटना  हो जाती है और जान माल का भी नुकसान होता है लिहाजा मौजूदा समय में विभाग ने किसानों से यह कहा है कि वे डीपी क्षेत्र में गोलाई बनाएं और नरवाई बिल्कुल न जलाएं। क्योंकि हो सकता है कि नरवाई जलाने से आगजनी की घटना हो जाए। विभागीय अफसरों ने भूसे की खाद बनाने के लिए भी किसानों को सलाह दी है और यह कहा है कि कंपोजिट खाद बनाने में विभाग की सलाह ली जा सकती है।

नरवाई जलाने से क्या है नुकसान

नरवाई में लगभग नत्रजन 0.5, स्फुर 0.6 और पोटाश 0.8 प्रतिशत पाया जाता है, जो नरवाई में जलकर नष्ट हो जाता है।
गेहूं फसल के दाने से डेढ़ गुना भूसा होता है। अर्थात यदि एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल गेहूं उत्पादन होगा तो भूसे की मात्रा 60 क्विंटल होगी और इस भूसे से 30 किलो नत्रजन, 36 किलो स्फुर, 90 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर प्राप्त होगा। जो वर्तमान मूल्य के आधार पर लगभग रुपये 300 का होगा जो जलकर नष्ट हो जाता है।
भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त हो जाती है।
भूमि में उपस्थित सूक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते हैं। सूक्ष्मजीवों के नष्ट होने के फलस्वरूप जैविक खाद निर्माण बंद हो जाता है।
भूमि की ऊपरी परत में ही पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं। आग लगाने के कारण ये पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं।
भूमि कठोर हो जाती है जिसके कारण भूमि की जल धारण क्षमता कम हो जाती है और फसलें जल्दी सूखती हैं ।
खेत की सीमा पर लगे पेड़- पौधे (फल वृक्ष आदि) जलकर नष्ट हो जाते हैं।
पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है। तापमान में वृद्धि होती है और धरती गर्म होती है।
कार्बन से नाइट्रोजन तथा फास्फोरस का अनुपात कम हो जाता है।