विक्रम विश्वविद्यालय की प्रणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

दैनिक अवन्तिका ब्रह्मास्त्र बुलेटिन … उज्जैन: विक्रम विश्वविद्यालय की प्रणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
विक्रम विश्वविद्यालय की प्राणिकी एवं जैव प्रोद्योगिकी अध्ययनशाला में “भारतीय ज्ञान विज्ञान में जैव वैज्ञानिकों का योगदान” विषय पर  आयोजन अंतर्गत आर्द्र भूमि पर विशिष्ट प्रदर्शनी का आयोजन
प्रोफेसर तेज प्रकाश पूर्णानन्द व्यास, अध्यक्ष, डॉक्टर हरस्वरूप ग्लोबल फाउंडेशन द्वारा किया गया ।
इस एग्जीबिशन का अवलोकन विश्व विध्यालय के कुलगुरू डॉ ए के पांडे, प्रोफेसर एस के कोठारी , प्रोफेसर काजल कुमार नंदी, अतिथि गणों एवम विद्यार्थियों ने किया।   डॉ तेज प्रकाश व्यास ने अपने संबोधन में कहा कि
वसुन्धरा वासियों के अक्षुण्ण जीवन  संरक्षण के लिए जल का आर्द्र भूमि का संरक्षण अति महत्व पूर्ण है।
पारिस्थितिकी संतुलन में आर्द्रभूमि (Wetlands) के अनंत लाभों को  सदन में अभिव्यक्त किया।
*”वनों को हम ‘पृथ्वी के फेफड़े’ कहते है तो आर्द्र भूमियों को ‘पृथ्वी की किडनी’ कहना सर्वथा उचित है।”*
*1971 के प्रसिद्ध रामसर कन्वेंशन के अनुसार “जलीय व स्थलीय पारिस्थितिकीय प्रणालियों के बीच का संक्रमण क्षेत्र जो दीर्घावधि में प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से, खारे या ताजे जल से भरा हुआ अथवा जल से संतृप्त हो, आर्द्र भूमि कहा जाता है जिसमें समुद्रतटीय भाग भी शामिल है जहाँ लघु ज्वार की स्थिति में जल की गहराई 6 मीटर से अधिक नहीं हो।”**हर वर्ष 2 फरवरी को ‘विश्व आर्द्र भूमि दिवस’ मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन 1971 में ईरान के रामसर शहर में अंतराष्ट्रीय आर्द्र भूमि कन्वेंशन को अपनाया गया था। इसी कन्वेंशन में ‘रामसर स्थल’ को भी चिन्हित करने की परिकल्पना की गयी थी जहाँ विश्व में परिस्थितिकीय रूप से अति महत्वपूर्ण आर्द्र भूमियों की पहचान कर उनके संरक्षण हेतु विशेष प्रयास करने पर बल दिया गया था।*
*2 फरवरी विश्व वेटलैंड दिवस के अवसर पर इंदौर के सिरपुर तालाब पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मुख्य आतिथ्य में अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित हुआ। जिसमें देशभर की 75 से अधिक रामसर साइट के प्रतिनिधि के साथ ही प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मुख्य आतिथ्य में एवं ग्लैंड स्विट्जरलैंड से पधारी सेक्रेटरी रामसर कन्वेंशन ऑन वेटलैंड डॉ मसुंडा मुंबा, कैलाश विजयवर्गी नगरीय प्रशासन मंत्री की उपस्थिति में सिरपुर तालाब एवं इसके समीप स्थित अमृत गार्डन में कार्यक्रम आयोजित हुआ, इसमें प्रकृति निधि संरक्षण संघ ग्लैंड स्विट्जरलैंड की ओर से भारतीय उपमहाद्वीप के प्रकृति एवम सरीसृप वैज्ञानिक रूप में तेज प्रकाश व्यास भी उपस्थित रहे। इंदौर शहर के सिरपुर तालाब एवं यशवंत सागर तालाब को देश की रामसर साइट में सम्मिलित किया गया है।*
*मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने वर्ल्ड वेटलैंड डे के अवसर पर सिरपुर वेटलैंड, इंदौर में आयोजित कार्यक्रम में ‘नेशनल प्रोग्राम फॉर कंजर्वेशन एक्वाटिक इकोसिस्टम’ (NPCA) की संशोधित मार्गदर्शिका एवं भारत की वेटलैंड्स संरक्षण की यात्रा से संबंधित ब्रोशर तथा रामसर साइट्स से जुड़े ब्रोशर का विमोचन किया। इस अवसर पर सीएम मोहन यादव ने कहा था कि, “वसुधैव कुटुंबकम” का भाव हम सभी को इस तथ्य की याद दिलाता है कि, समूची वसुधा एक कुटुंब के समान है।*
डॉक्टर तेज प्रकाश व्यास ने अभिव्यक्त किया कि
प्रकृति में विकराल रूप धारण कर रही पर्यावरणीय समस्याओं का निदान वास्तव में स्वयं प्रकृति में ही मौजूद है।” इस धारणा का आशय वास्तव में इन आर्द्र भूमियों से ही होता है। इसके पीछे उत्तरदायी वे प्रमुख पारिस्थितिकीय लाभ हैं जो इन आर्द्र भूमियों से प्राप्त होते हैं–
आपने बताया कि *जल शुद्धिकरण – आर्द्र भूमियां पर्यावरण में शानदार प्राकृतिक फिल्टर की तरह कार्य करती हैं। ये अवसादों को रोकती है, और जल में मौजूद संदूषकों को जैव उपचार विधि से अवशोषित करती हैं।* *अतिरिक्त जल संग्रहण – आर्द्र भूमियां एक वृहत् स्पंज की तरह कार्य करती हैं जो अतिरिक्त जल को संगृहीत कर लेती हैं और शुष्क मौसम में जब जल की कमी हो जाती है, वे धीरे-धीरे उस अतिरिक्त जल को पारितंत्र में वापस छोड़ती हैं।*
*बाढ़ और मृदा अपरदन पर नियंत्रण – आर्द्र भूमियां बाढ़ की रोकथाम और मृदा अपरदन को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाती हैं। बाढ़ या अधिक वर्षा की स्थिति जब नदियों के तटबंध क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, तब ये आर्द्र भूमियां जल की अधिक मात्रा अपने अंदर समाहित कर लेती हैं जिससे बाढ़ का फैलाव अधिक नहीं हो पाता। इसके अतिरिक्त आर्द्र भूमि की वनस्पतियां भी अपनी जड़ों के कारण मृदा अपरदन को रोकती हैं।**भूजल स्तर में वृद्धि – आर्द्र भूमि और उनकी वनस्पतियां भूजल संरक्षण व संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।* *खाद्य श्रृंखला में विविधता व संतुलन : आर्द्र भूमियों के उथले जल में उच्च मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व मौजूद होते हैं जो जल में उपस्थित सूक्ष्म जीवों जैसे नवजात हरे पौधों, नवजात मछलियों, नवजात उभयचरों आदि का प्रमुख भोजन होते हैं। ये सूक्ष्म जीव ही आर्द्र भूमि पारितंत्र का आधार है जिसके कारण खाद्य श्रृंखला में विविधता व स्थायित्व बना रहता है।*
*भू-जैव रासायनिक चक्रों में बड़ी भूमिका: आर्द्र भूमियां अपने उथले जल में मौजूद अधिक पोषक तत्वों के कारण भू जैव रासायनिक चक्रों (नाइट्रोजन चक्र, सल्फर चक्र आदि) के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं तथा पर्यावरण में इनका संतुलन बनाये रखती हैं।
*जैव विविधता हेतु अति महत्वपूर्ण: आर्द्र भूमियां विश्व की सर्वाधिक उत्पादक पारितंत्रों (Highest productive ecosystems) में गिनी जाती हैं। विश्व की लगभग 40% जीव प्रजातियों का मूल आवास आर्द्र भूमियां हैं। विश्व के कुल मत्स्य उत्पादन का करीब 60% हिस्सा भी आर्द्र भूमियों से ही आता है।*
*कार्बन सिंक के रूप में महत्वपूर्ण: हाल के वर्षों में, जब जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापन अत्यधिक विकराल समस्या के तौर पर सामने आ रहे हैं, आर्द्र भूमियों की कार्बन सिंक के रूप में भूमिका अति महत्वपूर्ण हो गयी है। आर्द्र भूमियां अपनी वनस्पतियों और मिट्टी के भीतर कार्बन की विशाल मात्रा को अवशोषित करने की क्षमता रखती हैं (विश्व के 12% कार्बन को) जिससे ग्रीन हाऊस प्रभाव पर नियंत्रण करने में मदद मिलती है। समुद्रतटीय आर्द्र भूमि क्षेत्रों को ‘ब्लू कार्बन इकोसिस्टम’ भी कहते हैं जो कार्बन अवशोषण में अहम भूमिका निभाते हैं।**तटीय क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदा सुरक्षा बैरियर: समुद्रतटीय क्षेत्रों में ये आर्द्र भूमियां तथा इनकी वानस्पतिक सम्पदा वास्तव में समुद्री लहरों से होने वाले भूमि कटाव, चक्रवाती तूफानों, सूनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कुप्रभावों को कम करने में मददगार सिद्ध होती हैं। दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों में 2004 की सूनामी के बाद विशेषतः तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव्स वनों के विस्तार पर अधिक बल दिया गया है जिसके अच्छे परिणाम भी सामने आये हैं। भारत में भी विशेष रूप से पूर्वी तटीय भागों में मैंग्रोव्स वनों का विस्तार इसी उद्देश्य से किया जा रहा है क्योंकि देश का यह भाग प्रायः चक्रवाती तूफानों से प्रभावित रहता है।*मानव समुदाय के लिये आर्थिक महत्व: विश्व के कुल मत्स्य उत्पादन का दो-तिहाई भाग आर्द्र भूमियां उत्पादित करती हैं। यदि कृषि व अन्य कृषि-सह-गतिविधियों को शामिल किया जाए तो विश्व की लगभग 1 अरब से अधिक आबादी अपनी आजीविका हेतु इन पर निर्भर हैं। पूर्वी कोलकाता आर्द्र भूमि तंत्र लगभग 20 हजार से अधिक लोगों को आजीविका के साधन प्रदान करता है। विकासशील देशों में आर्द्र भूमि क्षेत्रों में विशेषकर चावल की खेती और मत्स्य पालन बड़े पैमाने पर होते हैं। भारत व बांग्लादेश में फैला सुंदरबन आर्द्र भूमि क्षेत्र इसका एक सुन्दर उदाहरण है जहाँ चावल व जूट की काफी अधिक उपज होती है।*
*कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर संतोष ठाकुर ने किया एवं आभार डॉक्टर स्मिता सोलंकी ने माना माना। यह जानकारी प्राणिकी अध्ययन शाला के प्राध्यापक डॉक्टर संतोष ठाकुर द्वारा दी गई।*