उज्जैन के घाटों पर शिप्रा नदी में मिल रहा नाले का गंदा पानी, न आचमन कर सकते, न स्नान लायक,

 

 

21 वर्षों में 625 करोड खर्च हो गए, फिर भी शिप्रा मैली की मैली, फिर 600 करोड रुपए का बजट

दैनिक ब्रह्मास्त्र ने कल ही खोली थी शिप्रा शुद्धिकरण की पोल, आज एक बार फिर मिल गया प्रमाण

उज्जैन। दैनिक ब्रह्मास्त्र ने कल ही 22 अप्रैल 2024 को “उज्जैन में 625 करोड रुपए खर्च हो गए फिर भी शिप्रा मैली की मैली” शीर्षक से पड़ताल करती है खबर प्रमुखता से प्रकाशित की थी और आज सुबह के हालात यह थे कि पिछले 18 घंटे से शिप्रा नदी के मुख्य घाटों पर नाले का पानी सीधा नदी में मिल रहा हैं, जिसके कारण आमजन, पूजन के लिए घाट पर आ रहे यात्रियों, पुरोहितों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दूर-दूर से लोग उज्जैन पहुंचते हैं और वह शिप्रा नदी में स्नान करके भगवान महाकाल के दर्शन करते हैं। परंतु, हालत यह है कि श्रद्धालु जब घाट पर पहुंचे तो गंदा पानी अलग ही दिखाई दे रहा था। न तो वह आचमन लायक था और न ही स्नान लायक।
पिछले दो दिनों से शिप्रा शुद्धिकरण की पोल खोलता एक वीडियो भी वायरल हो रहा है।

कान्ह नदी का गंदा पानी भी मिलता है शिप्रा में

ध्यान रहे कि उज्जैन में बहती पुण्य सलिला शिप्रा नदी की बात करें तो पिछले 21 सालों में शिप्रा शुद्धिकरण के नाम पर 625 करोड रुपए खर्च हो चुके हैं। फिर भी शुद्धिकरण की बड़ी बात तो दूर, उज्जैन में मिलने वाला कान्ह या खान नदी का गंदा पानी अभी तक नहीं रोक पाए हैं। जिसके कारण शिप्रा का पानी अब आचमन लायक भी नहीं रह गया है। इस मामले को लेकर संत तक मुद्दा उठा चुके हैं। धरना- प्रदर्शन हो चुका है। हर बार बजट तय होता है। कागजों पर तो पैसा खर्च भी होता है, लेकिन शिप्रा शुद्ध नहीं होती।

फिर शिप्रा शुद्धिकरण की कवायद

एक बार फिर सरकार ने शिप्रा शुद्धिकरण के लिए प्रयास शुरू किए हैं। इसके लिए आगामी सिंहस्थ के मद्देनजर इंदौर जिले से उज्जैन की ओर बहने वाली शिप्रा नदी को पूरी तरह शुद्ध किया जाएगा। इस कार्ययोजना के लिए 600 करोड रुपए का बजट रखा गया है। कागजों पर योजना तैयार हो रही है और बजट के हिसाब से खर्च किया जाएगा। यह महती योजना यदि ठीक ढंग से कार्यान्वित हुई तो शिप्रा शुद्धिकरण के मामले में यह प्रयास मील का पत्थर साबित हो सकता है, अन्यथा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ते हुए शिप्रा जिस तेजी से मैली हो ही रही है।