अंतिम दिन सुनाया सुदामा चरित्र और राजा परीक्षित की कथा

सारंगपुर। कालियाखेड़ी गांव में चल रहे सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का मंगलवार को समापन हो गया। अंतिम दिन कथा में कथा व्यास पं. राधेश्याम नागर ने सुदामा चरित्र और राजा परीक्षित के मोक्ष की कथा सुनाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा की श्रीमद्भागवत भगवान का विग्रह है, जिसके अध्ययन, श्रवण, मनन और चिंतन से लोक-परलोक दोनों सुधरते हैं। महाआरती के बाद कार्यक्रम का समापन किया गया। कालियाखेड़ी गांव में गांववासियों द्वारा आयोजित भागवत सप्ताह के समापन पर कथावाचक ने कहा कि बिना दक्षिणा यज्ञ पूरा नहीं होता हमें भी भागवत कथा की दो संकल्प दक्षिणा चाहिए पहली दक्षिणा -आज से किसी की बुराई न करना और दूसरी-अपने देश, धर्म के लिए जान भी देनी पडे तो तैयार रहेंगे।
कथा में श्रीकृष्ण के विवाह की कथा सुनाते हुए बताया कि योगेश्वर कृष्ण कामजित हैं, उन्होंने 16108 विवाह किए। पर ये वह कन्याएं थीं जिन्हें एक राजा ने कैद कर रखा था।श्रीकृष्ण ने उन्हें छुडाया तो वे रो पडीं। हमें अपनाएगा कौन? हमारे लिए तो आत्महत्या ही एक मात्र विकल्प है। भगवन ने उन्हें पत्नी का दर्जा देकर उनकी जीवन रक्षा का उद्धार किया। कथा व्यास नागर ने महादानी नृग की कथा सुनाई। जिसने दान की गई अपनी एक गाय दुबारा दान कर दी, जिससे वह गिरगिट बन गया था। भगवान ने उसका स्पर्श कर उद्धार किया। कृष्ण सुदामा की कथा सुनाते हुए नागर ने कहा कि बचपन में श्रीकृष्ण का हिस्सा चना खाने से सुदामा दरिद्र हो गए, परंतु जब कृष्ण तो दो मुट्ठी तंदुल जाकर खिलाया तो फिर संपन्ना हो गए। जीवन में सुख चाहने वाले को किसी का हिस्सा नहीं लेना चाहिए। उन्होंने झूठा भोजन न करने, आहार की शुद्धि से विचार की शुद्धि और सबसे निश्छल और पवित्र व्यवहार करने की प्रेरणा दी। कथा व्यास ने आगे कहा कि बाद में जब यदुवंशियों ने साधुसंतों का अपमान किया तो उन्हें भी दंड भोगना पडा। श्रीकृष्ण के परम धाम जाने के बाद बलराम जी भी अपने धाम में चले गए। अंत में कथा व्यास को लोगों के प्रति आभार जताया। कथा के दौरान अनेक बार कीर्तन भजन के साथ ही भक्त तालियां बजाते हुए नृत्य करने लगे। अंत में ग्राम वासियों ने अयोध्या में विराजित भगवान राम की मूर्ति की तस्वीर भेंट कर उन्हें सम्मानित किया।