खुसूर-फुसूर विटामीन हरे-हरे का रंग चढा,हुए मलंग

दैनिक अवन्तिका उज्जैन  खुसूर-फुसूर

विटामीन हरे-हरे का रंग चढा,हुए मलंग

जन्म-मृत्यू के नाते वाली संस्था में विटामीन हरे-हरे का रंग चढने पर नए भी अब मलंग के हाल में आ पहुंचें हैं। अभी कुछ ही साल पहले आए ये मलंग अब पहले वालों के हाल में आ चुके हैं। बगैर भेंट –पूजा के कुछ नहीं कर रहे है। कुछ ही सालों पहले जब ये आए थे तो सीधे से कपडे पहनना नहीं समझते थे लेकिन अब ये मलंग इसी शहर की खा रहे हैं और इसी शहर के जन्म-मृत्यू संबंध निभाने वालों को दमडी से खाने में दीमक की तरह से लगे हुए हैं। इसे नियत कहें या इस शहर के लोगों की नियति की बाहर से आने वाले यहां मजे मारते हैं और मालवा की धरा का मूल यहां जोगडा ही रह जाता है। यहीं कुछ जन्म –मृत्यू नाते की संस्था में भी हो रहा है। जो दावे यहां के संचालन  के लिए किए जा रहे थे वो खोखले ही नहीं पूरी तरह से हवाई ही रहे हैं। उनमें से एक भी धरातल पर नहीं उतरा है। जन्म-मृत्यू के नाते वाली संस्था की उप सखी पानी वाली में भी यही कुछ चल रहा है। जमकर यहां भी पुडिया के नाम पर इस शहर को नोचा जा रहा है। यहां का अदने से अदना भी पानी से अपनी जेब को भर रहा है बडे वाले तो सबकों घूमा रहे हैं और मगर मच्छ हो चुके हैं। ठेकेदारों के हाल भी इन दोनों स्थानों पर एक से हैं अवैध कनेक्शन तो ऐसे कर रहे हैं जैसे घर में ही गंभीर हो और बटन दबाकर छोड देंगे। धर्म का शहर है और धर्म ही इन दोनों जगह पर टिपारे में बंद पडा है। सपोले से भूजंग के हाल में आए इन मलंगों को दबोचने के लिए रंगीन करने वाली और हरे- हरे के विश्लेषण करने वाली दो संस्था है पर वह भी शिकायत पर काम करती है। स्वत: संज्ञान उसे लेना नहीं आता है। कई मलंग जब इन दो संस्थाओं में आए थे तब ठीक से दो जोड पतलून या सलवार नहीं थी। हाल ही के वर्षों में इनके पास शहर के कई क्षेत्रों में संपत्ति ,मकान,प्लाट, कृषि भूमि और भी क्या –क्या हो गया है। गफलत के लिए  अपने रिश्तेदारों के नाम पर किए गए इस खेल में पावर बनवा कर रख लिए हैं। कभी कोई उंच नीच होगी तो पावर से हासिल कर लेंगे और रेड पड गई तो दस्तावेज के आधार पर कह देंगे की यह तो रिश्तेदारों के हैं हमारे नहीं है। खुसूर-फुसूर है कि सिंहस्थ 16 के पहले आए मलंगों को टटोल कर तो देखों ये ऐसे ही उज्जैनवासियों को नहीं निपटा रहे हैं ,दीमक की तरह से खा रहे हैं। पीछे विटामीन हरे-हरे का पावर मिला हुआ है । इतनी जल्दी इनके पास इतना आया कैसे। इनकी कुछ सालों की तनख्वाह जोडों तो बहुत ज्यादा आधा खोखा का हिसाब बनेगा । उसमें भी घर खर्च और तमाम खर्च देखें जाएं तो मात्र कुछ लाख के ही ये आसामी हो सकते हैं,लेकिन इनकी संपत्ति के जो खुसूर फुसूर है वो करोडों की है। इंदौर के घोटाले की तरह से पानी वाले विभाग में चौकीदार , चतुर्थ श्रेणी कनेक्शन करने वाले लाईन का जिम्मेदार से लेकर विभाग का जमघटिया  और उपसंत्री सब ने मिलकर पानी से पैसे उगा लिए । ऐसा एक तलाशेंगे तो चार सामने आ जाएंगे। यहां तो खरबूजा –खरबूजे को देखकर रंग बदल रहा है।