वाणिज्यिककर विभाग पर परीक्षा में धांधली, कर्मचारी ही पहुंचे न्यायालय
रीडर-सहायक और करीबियों को लाभ, नकल व परीक्षा प्रक्रिया में हेरफेर
इंदौर। वाणिज्यिककर यानी स्टेट जीएसटी विभाग में आयोजित हुई विभागीय परीक्षा विवादों में उलझ गई है। विभाग ने 10 वर्षों बाद ऐसी कोई परीक्षा आयोजित की थी। धांधली का आरोप लगाकर विभाग के कर्मचारियों ने ही अपने महकमे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वह आरोप लगा रहे हैं कि विभाग ने पीएससी या व्यापमं जैसी किसी एजेंसी को देने की बजाय खुद परीक्षा करवाई। नियमों में हेरफेर करने से लेकर नकल भी करवाई गई। परीक्षा को लेकर आरटीआइ में जानकारी नहीं मिलने के बाद कर्मचारियों ने कोर्ट में याचिका दायर करते हुए विभाग को कानूनी नोटिस भेज दिया है।
वाणिज्यिककर विभाग के लिपिक श्रेणी के कर्मचारियों को इंस्पेक्टर और कराधान सहायक (टैक्स असिस्टेंट) के पदों पर नियुक्त करने के लिए परीक्षा नवंबर में आयोजित की थी। इंदौर के दो केंद्रों पर प्रदेशभर के 400 से ज्यादा विभागीय उम्मीदवार शामिल हुए थे। कंप्यूटर आधारित आनलाइन परीक्षा होने के बावजूद इसका स्कोर मौके पर जारी नहीं किया गया। रिजल्ट घोषित करने में एक माह लग गया।
इस बीच कर्मचारियों ने अपने ही विभाग को कटघरे में खड़ा करते हुए आरोप लगाया कि चुनिंदा उम्मीदवारों को नकल करवाने से लेकर प्रश्न लीक तक किए गए। और तो और, अनिवार्य व न्यूनतम योग्यता के पैमाने को भी दरकिनार कर दिया गया।
कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधि आरोप लगा रहे हैं कि परीक्षा में बेजा लाभ देकर चयनित ज्यादातर उम्मीदवारों में तमाम ऐसे हैं, जो परीक्षा करवाने के जिम्मेदार आला अधिकारी के रीडर और सहायक जैसे पदों पर काम करते रहे हैं। उन्हें व कुछ करीबियों को लाभ देने के लिए भ्रष्टाचार किया गया। दरअसल विभाग ने अपने उच्चाधिकारियों की एक कमेटी बनाई थी। पेपर सेट करवाने से लेकर परिणाम घोषित करने का जिम्मा उन्हीं का था।
अलग पद, एक पेपर
इंस्पेक्टर और कराधान सहायक दोनों अलग-अलग पदों के लिए विभाग ने ही प्रश्नपत्र तैयार किया और उसी बहुवैकल्पिक प्रश्न के आधार पर चयन कर लिया गया। असल में इन पदों के लिए पीएससी अलग-अलग दो परीक्षाएं आयोजित करती हैं। इतना ही नई विभाग ने कंप्यूटर दक्षता के डिप्लोमा (सीपीसीटी) से भी तमाम लोगों को छूट देते हुए इस परीक्षा में शामिल कर लिया गया। कर्मचारियों ने शिकायत की है कि सीपीसीटी नहीं होने के कारण बीते महीनों में जबलपुर, ग्वालियर जैसे शहरों में पदस्थ कई लिपिकों को बर्खास्त कर दिया गया था।
दस्तावेज बदले, जानकारी देने से इन्कार
जनवरी में रिजल्ट घोषित होने के बाद नए पदों पर पदस्थापना देने की कार्रवाई भी विभाग ने शुरू कर दी। इस बीच कर्मचारियों ने शिकायत की कि मनमाना चयन करने के लिए कई लोगों के मूल दस्तावेज और योग्यता इस परीक्षा में बदल दी गई। स्कोर से लेकर अन्य जानकारी भी सूचना के अधिकार में देने से इन्कार कर दिया गया। विभाग में शिकायतों का दौर चलने के बाद सुनवाई नहीं हुई तो मामला कोर्ट तक पहुंच गया है।
इनका कहना है
जो चयनित नहीं हुए, वे शिकायत कर रहे हैं। कोर्ट भी ऐसे ही लोग पहुंचे हैं। परीक्षा भी आनलाइन ली गई। रिजल्ट तुरंत इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि उसमें सीआर के नंबर भी जोड़ने थे। जिसे तो एमपी आनलाइन नहीं जोड़ सकता था। उसकी गणना विभाग को ही करनी थी। कंप्यूटर डिप्लोमा (सीपीटी) नहीं रखने वाले भी विभाग के कर्मचारी ही थे। स्थायीकरण से उन्हें इस आधार पर कैसे बाहर किया जा सकता है। प्रश्नपत्रों के भी हमने अलग-अलग सेट बनाए थे। ओबीसी आरक्षण का विवाद लंबित है, इसलिए 13 प्रतिशत पदों का रिजल्ट रोक लिया गया।
-डाॅ. नारायण मिश्रा, एडिशनल कमिश्नर व परीक्षा समिति प्रमुख