शासकीय विभाग के पोर्टल दे रहे बड़ा धोखा, आए दिन कोई ना कोई परेशानी करती है नुकसान

 

इंदौर। सरकार एक ओर तो आनलाइन सुविधाओं को बढ़ा रही है, विभागों में नवीनतम सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग हो रहा है, उधर कुछ सरकारी विभागों के पोर्टल इतने पीछे चल रहे हैं कि उनकी जानकारी पर भरोसा ही नहीं किया जा सकता।

सूचनाएं समय-समय पर अपडेट नहीं किए जाने की वजह से उन पर पुरानी जानकारी दिख रही हैं। यह स्थिति तब है जब प्रदेश सरकार के सभी विभागों में उप संचालक या संयुक्त संचालक स्तर के अधिकारी को आइटी की जिम्मेदारी दी गई है। उनके अधीन सलाहकार (आइटी) काम करते हैं। उप संचालक और सलाहकार स्तर के अधिकारियों के पास पोर्टल में लाग-इन करने का अधिकार रहता है।

वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर जानकारी अपडेट करने की जिम्मेदारी उनकी रहती है। इतना ही नहीं, अधिकतर विभागों में फोटो और कौन क्या है यह जानकारी तो अपडेट कर दी जाती है, पर विभिन्न गतिविधियां, रिपोर्ट्स, आंकड़े वर्षों पुराने हैं।
यहां तक कि सीएम डैशबोर्ड में भी कई विभागों ने पुराने आंकड़े दर्ज कर रखे हैं, जिससे लोग गुमराह हो रहे हैं। जानकारों का कहना है कि विभाग यदि अधिक से अधिक जानकारी सार्वजनिक करे तो सूचना के अधिकार के अंतर्गत जानकारी मांगने के लिए आवेदन कम आएंगे। आमजन को भी सुविधा हो जाएगी।

ऑनलाइन व्यवस्था पर लाखों खर्च

सरकारी कामकाज जनता की नजर में रहे। इसके लिए सरकार हर कामकाज की प्रगति को पब्लिक डोमेन में रखना चाहती है। इसके लिए लाखों खर्च कर ऑनलाइन व्यवस्था बनाई गई है, लेकिन कई विभागों के अफसर हैं कि इस मंशा पर पलीता लगा रहे हैं। प्रदेश में इसके कई उदाहरण हैं।
बीबीजल संसाधन विभाग के अधिकारी जनता को मई 2024 में बांधों का अगस्त 2023 का जलस्तर पढ़ा रहे हैं तो सीएम डैशबोर्ड पर नगरीय प्रशासन विभाग के अधिकारी नर्मदा नदी के घाटों पर जुलाई 2022 की रिपोर्ट दिखा रहे हैं। इन दो विभागों के अधिकारियों के अलावा भी कई विभाग प्रमुख जनता को भ्रमित करने वाली सूचनाएं परोस रहे हैं। विभाग के अपने ऑनलाइन पोर्टल हैं। सीएम डैशबोर्ड जैसे प्रमुख पोर्टल पर दो-दो साल पुरानी रिपोर्ट्स हैं।
इन्हें 75 फीसदी विभाग के अफसर अपडेट नहीं करवा पा रहे। कर्मचारी मामलों के जानकार अनिल वाजपेयी का कहना है कि पहले की तुलना में अब ज्यादातर विभाग के मुखिया जनता की जानकारी जनता से ही छुपा रहे हैं। यह रणनीति का हिस्सा है।
इससे कई विभागों में आरटीआई आवेदन लगाने पड़ते हैं। कई बार अफसर घुमावदार जवाब देकर परेशान करते हैं। कुछ समय पहले ही मप्र मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने दावा किया था कि ऑफिस के लक्ष्य वह ई- के तहत 100 प्रतिशत काम ऑनलाइन करने लगी है।
अब हाल यह है कि उपभोक्ताओं की कितनी शिकायतें, कितने समय में हल की, शिकायतों की स्थिति क्या है, यह जानने के लिए रहा जूझना पड़ है। आरटीआइ कार्यकर्ता अजय पाटीदार का कहना है कि दूसरे विभागों के भी यही हाल हैं।

छुपाई जा रही जानकारियां —

सरकार की मंशा है कि पब्लिक डोमेन में सारी जानकारियां और रिपोर्ट्स हो, लेकिन विभाग प्रमुख उन्हें छुपा रहे हैं। सीएम डैशबोर्ड पर विभागीय समीक्षा बैठकों के विवरण जानने का विकल्प है। ऊर्जा विभाग से जुड़ा समीक्षा बैठकों का विवरण 25 अप्रैल 2023 के बाद से अपडेट ही नहीं किया गया है।
जेल, उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य समेत तमाम विभागों से जुड़ा विवरण अपडेट नहीं है। नर्मदा नदी संरक्षण के लिए विभिन्न जिला मुख्यालयों पर सीवरेज योजनाएं चल रही हैं। प्रगति रिपोर्ट जानने का विकल्प दिया है, जिस पर 30 अप्रैल 2022 के बाद से रिपोर्ट अपडेट नहीं है। घाटों पर पानी की गुणवत्ता जानने संबंधी विकल्प में जुलाई 2022 के बाद से अपडेट नहीं है।
लोक सेवा प्रबंधन विभाग के अधिकारी सीएम हेल्पलाइन डैशबोर्ड पर शिकायतों का विश्लेषण समाधान दिवस वाले विकल्प पर अप्रैल 2020 से दिसंबर 2021 का विश्लेषण पढ़ा रहे हैं।
मनरेगा पोर्टल पर 15 दिसंबर 2022 की रिपोर्ट को आज की तारीख में पढ़ाया जा रहा है। सरकारी पोर्टल पर मिट्टी के पोषक तत्वों को लेकर जो जानकारी दी जा रही है, वह 25 अगस्त 2023 की है, जबकि खरीफ फसलों की बुवाई का सीजन आ रहा है।
स्वच्छ भारत मिशन के तहत विभागीय पोर्टल ने पब्लिक डोमेन में जो रिपोर्ट डाली है वह 6 जनवरी 2023 की है, उसके बाद से कोई अपडेट नहीं है।