निजी अस्पतालों में “चमडे के लिए भैंस मारने” की कहावत चरितार्थ

 

-सरकारी से पैकेज पैमेंट के अतिरिक्त हितग्राही से नकद राशि ले रहे फिर भी पूरा लाभ नहीं दे रहे

 

– सरकार से भी धोखा और हितग्राही से भी, दो तरफा लाभ लेने के लिए किया जा रहा खेल

उज्जैन। केंद्र सरकार की आयुष्मान योजना का उद्देश्य गरीब एवं असहाय परिवारों को इलाज के खर्चे से बचाना है। इसके विपरित कतिपय निजी अस्पताल दोहरे मजे मारने में लगे हैं। योजना के हितग्राहियों को तो इसका लाभ कम मिल रहा है और ऐसे अस्पताल दो तरफा लाभ कमा रहे हैं। कतिपय अस्पतालों में “चमडे के लिए भैंस मारने” की कहावत को चरितार्थ किया जा रहा है।

आयुष्मान योजना को पलीता लगाने का काम कतिपय निजी अस्पतालों में शुरू हो गया है। इसके तहत हितग्राहियों को पैकेज ईलाज के नाम पर पहले उलझाया जाता है उसके बाद उन्हें असली रंग दिखाया जाता है। प्रकरण स्वीकृति उपरांत हितग्राही की मजबूरी हो जाती है और उसे ऐसे ही अस्पतालों में शोषण का शिकार होकर उपचार करवाना पड रहा है। इसे लेकर जिला स्तर पर बनी समितियों की स्थिति यह है कि अब तक ऐसे अस्पतालों की जांच और हितग्राहियों से फीडबेक तक नहीं लिए गए हैं।

पैकेज पर ऐसे कमा रहे दोहरा लाभ-

नियत पैकेज- इलाज पर अस्पताल मनमाने तरीके से वसूली न कर सकें और लागत नियंत्रण (Cost Control) रखा जा सके इसके लिए इलाज संबंधी पैकेज रेट तय किए गए हैं। ये पैकेज रेट सरकार ने पहले ही तय कर दिये हैं । आयुष्मान भारत योजना के रेट में इलाज संबंधी सभी तरह के (दवाई, जांच, ट्रांसपोर्ट, इलाज पूर्व, इलाज पश्चात के खर्चे) व्यय शामिल होंगे, जिसमे 23 स्पेशिऐलिटीज़ के कुल 1350 पैकेजेसए शासकीय चिकित्सालय हेतु 472 आरक्षित पैकेजेस साथ ही अतिरिक्त पैकेज की सुविधा और 10 दिन का फॉलोअप भी शामिल हैं ।

ऐसे ले रहे दोहरा लाभ- प्रकरण स्वीकृति उपरांत पंजीबद्ध्‍ कतिपय निजी अस्पताल को हितग्राही की बीमारी उपचार का पूरा पैकेज स्वीकृत किया जाता है। इसके बाद ही पुरा खेल शुरू होता है। संबंधित हितग्राही को कहा जाता है कि पैकेज के अतिरिक्त आपको इतनी राशि देना होगी, उसका कारण बताया जाता है कि सरकार के पैकेज रेट पुराने हैं । इस पर अलग से आपकों फलां नकद राशि देना होगी। हितग्राही पैकेज रेट से अलग से मांगी गई करीब 8-15 फीसदी राशि देने को तैयार हो जाता है। अब ईलाज के दौरान हितग्राही के साथ धोखाधडी करते हुए उसे उच्च गुणवत्ता की दवाई देने की बजाय लोकल दवाईयां दी जाती है और आर्थिक लाभ लिया जाता है। इसी तरह से पैकेज के अन्य खर्चेा में कटौती करते हुए उधर से भी पैसा निकाल लिया जाता है और हितग्राही से अलग से लिया गया नकद तो है ही सूखा लाभ।

अस्पतालों के पैकेज रेट में अंतर –

कतिपय निजी अस्पतालों ने अपने पैकेज रेट बना लिए हैं। सरकार के तय पैकेज रेट से इनके पैकेज रेट की राशि लगभग 8-15 प्रतिशत अधिक रखी गई है। हितग्राही को संतुष्ट करने के लिए यह पैकेज रेट भी बताए जाते हैं और उसे समझाया भी जाता है कि सरकार से जो पैसा मिल रहा है वो तो ले ही लें अतिरिक्त तौर पर आपको तो नाम मात्र का पैसा देना होगा।

बीमाधारकों की भी समस्या-

तय पैकेज रेट का टंटा स्वास्थ्य बीमा धारकों के साथ भी होने लगा है। इसमें भी बीमा कंपनी तय पैकेज के मान से ही पैसा संबंधित अस्पताल को बीमाधारक के उपचार के लिए स्वीकृत करती है। अस्पताल अपने पैकेज के मान से संबंधित बीमा धारक से नकद राशि अलग से जमा करवाते हैं। आखों के मोतियाबिंद के आपरेशन के लिए बीमा कंपनी 25 हजार 500 रूपए ही स्वीकृत करती है जबकि इंदौर के आंख के निजी अस्पताल में इसका पैकेज लेंस के हिसाब से है। अस्पताल का पैकेज लेंस के मान से 28 हजार, 33 हजार एवं 42 हजार का है। बीमाधारक की और से अस्पताल क्लेम करता है तो कंपनी निश्चित राशि ही अस्पताल को देती है। शेष राशि बीमा धारक को अलग से ही अदा करना होती है।

 

 

 

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