डीएपी से बेहतर एनपीके उर्वरक

-कृषि अधिकारियों एवं कृषि वैज्ञानिकों की कृषकों को उचित सलाह

 

-संतुलित उर्वरक के उपयोग से उत्पादन लागत में कमी और उत्पादकता में वृद्धि

 

उज्जैन। खरीफ मौसम की फसल बुआई का समय नजदीक आ रहा है। जिले में खरीफ मौसम में सोयाबीन मुख्य फसल लगभग पांच लाख हेक्टेयर में बुआई की जाती है। बीज के बाद उर्वरक का उपयोग बहुत अहम हो जाता है। कृषि विभाग के अधिकारियों एवं कृषि वैज्ञानिकों की कृषकों को उचित सलाह देते हुए बताया कि डीएपी से बेहतर एनपीके उर्वरक होता है।

सोयाबीन फसल में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सल्फर की मात्रा क्रमश: 25:60:40:20 किग्रा/हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। किसान कल्याण तथा कृषि विभाग उप संचालक आरपीएस नायक ने बताया कि सोयाबीन फसल में संतुलित मात्रा में उर्वरक का उपयोग डीएपी के स्थान पर एनपीके उर्वरक का सबसे अच्छा विकल्प है। बाजार में एनपीके के विभिन्न विकल्प 12:32:16 या 10:26:26 एवं 16:16:16 के नाम से उपलब्ध है। एन पी के से फसलों में संतुलित मात्रा में पोषक तत्व पौधों को उपलब्ध हो जाते हैं। इसके उपयोग से अलग से अन्य उर्वरक की मात्रा देने की आवश्यकता नहीं होती है। संतुलित उर्वरक के उपयोग से उत्पादन लागत में कमी होती है और साथ ही उत्पादकता में वृद्धि होती है। किसानों से अनुरोध है कि डीएपी उर्वरक के स्थान पर एनपीके उर्वरक का उपयोग करें। साथ ही संतुलित मात्रा में उर्वरक का उपयोग करें। आवश्यकता से अधिक उर्वरक भूमि और पर्यावरण दोनों को नुकसान पहुंचाता है। मिट्टी परीक्षण के अनुशंसा अनुसार संतुलित मात्रा में उर्वरक का उपयोग करें।

 

फसल बुआई के समय यदि सीड कम फर्टिलाइजर सीड ड्रील से करते हैं तो बेहतर होगा। इससे उर्वरक एवं बीज अलग-अलग रहता है और उर्वरक बीज के नीचे गिरता है और लगभग 70 प्रतिशत उपयोग हो जाता है। डबल पेटी वाली मशीन न हो तो अन्तिम जुताई के समय अनुशंसित उर्वरक का उपयोग करें। अधिक जानकारी के लिये सम्बन्धित क्षेत्र के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी के कार्यालय या सम्बन्धित क्षेत्रीय कृषि विकास अधिकारी से सम्पर्क कर सकते हैं।