खुसूर-फुसूर पेयजल को लेकर सब “पानी –पानी”
दैनिक अवन्तिका खुसूर-फुसूर पेयजल को लेकर सब “पानी –पानी”शहर में पिछले 2 माह से पेयजल को लेकर आमजन परेशान है। कभी क्या परेशानी तो कभी क्या परेशानी के तहत पेयजल मिलना दुभर होता जा रहा है।आमजन हैरान ,परेशान है कि आखिर कब तक जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारियों से बचते हुए परेशानी और समस्याओं का सहारा लेकर बचते रहेंगे। गंभीर बांध बनने के बाद शहर के आलमबरदारों ने पलट कर नहीं देखा की हम किस और जा रहे हैं। हमारी खपत किस मान से बढ रही है और आमजन ने ये नहीं सोचा कि हम कितना फिजुल बिगाड रहे हैं। परेशानी में ही हर चीज की कीमत पता चलना तय है। जिम्मेदारों को गंभीर के अतिरिक्त अन्य आसरे की कीमत का अंदाजा हो रहा है तो आमजन को पानी की किमत का अंदाजा हो रहा है। कोई डेढ दशक पहले ही शहर ने भयंकर जलसंकट का दौर देखा है। अमलावदाबिका गांव से पाईप लाईन डालकर पानी गंभीर तक लाया गया था। उसकी सप्लाय से शहर का गर्मी के दिनों में काम चला था। “अजातशत्रु” ने शहर के प्रति अपना स्नेह और प्रेम जताया था और जन-जन के सूखे कंठ को तर करने के लिए पूरा जिम्मा उठाया था। प्रशासनिक मुखिया के बतौर उन्हें अब भी याद किया जाता है। उस समय सेवरखेडी को लेकर आलमबरदार जागे थे, राजनीतिक दृष्टि से नुकसान की बात सामने आने पर पूरे मामले से ही नेतृत्व ने हाथ खींच लिए थे जबकि योजना के टेंडर तक हो गए थे और एजेंसी तक फायनल हो गई थी। विचार किजिए अगर योजना अमल में आ चुकी होती तो पेयजल के लिए आमजन को पानी-पानी नहीं होना पड रहा होता और जिम्मेदारों को समस्याओं और परेशानी के बहाने की जरूरत नहीं होती। खुसूर-फुसूर है कि तत्कालीन दौर में अगर सब कुछ जनसामान्य के हितों को देखते हुए किया जाता तो आज उज्जैन के पास बेहतर विकल्प ही नहीं होता, नर्मदा का महंगा पानी फिजुल नहीं बहाना पडता। 40 साल में एक और बडी पेयजल योजना जिले में आकार ले लेती। इसके साथ ही सिंचाई का रकबा बढता वो अलग ही होता। अब जबकि पेयजल को लेकर पानी –पानी के हाल हैं तो अब तो कम से कम जन सामान्य हित पर सीधा निर्णय होना ही चाहिए।