दैनिक अवंतिका उज्जैन। श्रावण मास में निकलनेे वाली महाकाल की सवारी में पालकी की जगह भगवान को ट्रैक्टर ट्राली या बैलगाड़ी में निकाले जाने को लेकर नगर के नेताओं द्वारा दिए गए सुझावों को लेकर अब एक नया विवाद शुुरू हो गया है। 
मठ मंदिर सनातन धर्म मोर्चा ने इस संबंध में कहा है कि नेता बैठकों में चर्चा में बने रहने के लिए इस तरह के बेतुके सुझाव न दे। इसे लेकर मोर्चा ने श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति पत्र भी लिखा है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में हुई समिति की बैठक में सांसद अनिल फिरोजिया ने सवारी में महाकाल की प्रतिमा को पालकी की जगह ट्रैक्टर ट्राली में सजाकर निकालने का सुझाव दिया था। वहीं बैठक में मौजूद निगम सभापति कलावती यादव ने कहा था कि पालकी की जगह बैलगाड़ी में भी प्रतिमा निकाल सकते हैं। इन सुझावों का नगर में विरोध शुरू हो गया है। मोर्चा का कहना है कि यह हिंदू सनातन धर्म की परंपराओं का अपमान है। 
महाकाल राजा के रूप में पालकी 
में प्रजा का हाल जानने निकलते हैं 
मंदिर से जुड़े पंडे-पुजारियों और नगर के विद्वानों का कहना है कि बाबा महाकाल राजाधिराज के रूप में चांदी की पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण पर प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते हैं। इसमें किसी प्रकार के परिवर्तन की जरूरत नहीं है। यह परंपरा राजा महाराजाओं के जमाने से चली आ रही है। पालकी में बैठे राजा महाकाल की छवि देखते ही बनती है। लाखों लोग सवारी मार्ग में खड़ेे होकर पालकी के आने का इंतजार करते हैं। ऐसे में पालकी को कैसे हटा सकते हैं जो कि इस पूरी सवारी में सबसे आकर्षण का केंद्र होती है। मंदिर के पंडे-पुजारियों से लेकर कोई भी नहीं चाहता है कि पालकी हटे और बाबा की प्रतिमा किसी अन्य वाहनों पर निकाली जाए। 
जगन्नाथ पुरी में आज भी रथ में 
सवार होकर निकलते हैं भगवान   
उड़ीसा के पुरी में भगवान श्री जगन्नाथ आज भी लकड़ी के एक विशाल रथ में सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं। पुरी में भी भगवान को रथ में निकालने की परंपरा सैकड़ों सालों से राजाओं के जमाने से चली आ रही है। आज तक इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया। फिर महाकाल की पालकी को लेकर किसी को क्या दिक्कत है। इस पर उज्जैन के विद्वानों और सनातनियों को विचार करना होगा।