उम्र आड़े नही आई और विद्यार्थी बनने की चाह ने नया रास्ता बनाया

 

अब योग सीखने के लिए ले रहे प्रवेश

 

इंदौर. रिटायरमेंट के बाद अधिकांश लोग आराम करने या परिवार के साथ समय बिताने का चयन करते हैं लेकिन कुछ लोग इस उम्र में भी विद्यार्थी बनने की चाह रखते हैं।

उम्र के साथ होने वाली बीमारियों से दूर रहने और खुद को फिट रखने के लिए कुछ लोग योग में रूचि दिखा रहे हैं। इसके लिए वे योग में डिप्लोमा और डिग्री भी कर रहे हैं। यह दिखाता है कि उम्र की कोई सीमा नहीं होती जब बात सीखने और विकास की हो।
डीएवीवी के स्कूल ऑफ योगा में करीब 25 विद्यार्थी ऐसे हैं, जिनकी उम्र 50 साल से ज्यादा है।
इनमें से कुछ लोग रिटायर्ड अधिकारी है। विभागाध्यक्ष डॉ. एसएस शर्मा बताते हैं कि इन विद्यार्थियों का उद्देश्य केवल डिप्लोमा तक सीमित नहीं है। वे मास्टर्स (एमए) करने में भी रुचि दिखा रहे हैं। कई विद्यार्थी अपने योग शिक्षण के अनुभव को आगे बढ़ाना चाहते हैं और योगा थेरेपी, योगा साइकॉलजी जैसी विशेष क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त करना चाहते हैं।
डीएवीवी के इन विद्यार्थियों का उत्साह दिखाता है कि शिक्षा और स्वास्थ्य का संगम कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
योग न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभकारी है। रिटायरमेंट के बाद इसे अपनाकर ये विद्यार्थी समाज के लिए एक प्रेरणा बन रहे हैं। विद्यार्थियों का समर्पण और इच्छाशक्ति उन्हें न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और सामाजिक रूप से भी मजबूत बना रही है। स्कूल ऑफ योग अब उन लोगों के लिए एक आदर्श केंद्र बन गया है जो अपने जीवन के दूसरे चरण में नई शुरुआत करना चाहते हैं।

66 साल की उम्र में लिया एडमिशन किशोर बिजली विभाग के सुप्रीटेंडेंट इंजीनियर के पद से रिटायर हैं।
66 साल की उम्र में उन्होंने डीएवीवी के स्कूल ऑफ योगा से पीजी डिप्लोमा इन योग थेरेपी पूरा किया। वह बताते हैं कि मैं पिछले 20 सालों से डायबिटीक हूं और दो साल पहले बायपास सर्जरी भी हो चुकी है। नौकरी के समय खुद के लिए समय नहीं निकाल पाते थे। एक साल पहले मैंने डीएवीवी में एडमिशन लिया।
उस समय पैरों में दिक्कत होने के कारण ठीक से चल भी नहीं पाता था लेकिन योग करने के बाद अब कोई परेशानी नहीं है। डायबिटीज में इंस्यूलीन पर था, जो अब कम हो गई है। साथ ही मैमोरी लॉस की समस्या भी खत्म हुई है। इस साल एमए में एडमिशन लेकर आगे की पढ़ाई करने का विचार है।