खुसूर-फुसूर नियम तो हैं सिर्फ पालन करवाने की जरूरत
दैनिक अवंतिका खुसूर-फुसूर
नियम तो हैं सिर्फ पालन करवाने की जरूरत
देखा देखी में कई बार असमंजस के हाल भी हो जाते हैं। दुकान , प्रतिष्ठान को लेकर एक बात सामने आ रही है जिसमें बताया जा रहा है कि दुकान के बाहर उसका नाम और उसके संचालक का नाम दर्ज करवाने के लिए नियम बनाया जाएगा या फिर अन्यानेक तरीके से इस बात को पेश किया जा रहा है। दुकान को लेकर सीधे तौर पर गुमास्ता का कानून काम करता है। बात कोई 20-25 साल पुरानी है बिजली संकट के दौरान रात 8 बजे से दुकानों को बंद करने के आदेश शासन स्तर से आए थे। दुकानदारों से दुकानें समय पर बंद करवाने के लिए श्रम विभाग के निरीक्षक और टीम मैदान में उतरी थी उस दौरान इस मामले को लेकर भी चालान बनाकर जुर्माना वसूला गया था कि समय पर दुकान बंद नहीं की गई और दुकान,संस्थान,कारखाना के बाहर स्पष्ट रूप से दिखने वाला बोर्ड नहीं था जिस पर संबंधित दुकान,कारखाना,संस्थान का नाम और संचालक का नाम के साथ उनका टेलीफोन,मोबाईल नंबर नहीं था। बीच में गुमास्ता लायसेंस का अधिकार नगरीय निकायों के पास पहुंचा था। कुछ साल इनके पास अधिकार रहे लेकिन इन्होंने उस पर ध्यान ही नहीं दिया। सरकारों ने स्थिति भांपते हुए पून: अधिकार श्रम विभाग को दे दिए। दुकान के पंजीयन के लिए गुमास्ता कानून के तहत लायसेंस लेना अनिवार्य है। विभागीय अधिकारी बताते हैं कि दुकान के बाहर नाम का स्पष्ट बोर्ड लगाना उस पर संचालक का नाम स्पष्ट रूप से देखने में आए ऐसा अंकित करना के साथ ही मोबाईल एवं टेलीफोन नंबर लिखने का नियम पूर्व से ही है उसके पालन की जरूरत है। खुसूर-फुसूर है कि नियम कानून तो कई सारे पूर्व से ही बने हुए हैं । धरातल पर उनके अमल को लेकर जागृति की जरूरत जरूर है । अधिकांश विकृतियों का प्रसार जागृति के अभाव में ही चल रहा है। धार्मिक शहर उज्जैन में भी श्रम विभाग के निरीक्षकों को मैदान में लाने की जरूरत है उससे शासन को राजस्व भी मिलेगा और नियंत्रण का मुद्दा भी हल होगा। अरे अब तो दुकान,संस्थान,कारखाने का जियो टेग भी हो रहा है।