दैनिक अवंतिका खुसूर-फुसूर मन से नहीं मस्तिष्क से लगे हों…!कहा जाता है मन से काम करने में काम सार्थक और सिद्ध होता है

दैनिक अवंतिका

खुसूर-फुसूर

मन से नहीं मस्तिष्क से लगे हों…!कहा जाता है मन से काम करने में काम सार्थक और सिद्ध होता है। मन के आगे जीत है मन के आगे हार… मन से बडा न कोई भईया । मन होता है तो इंसान वो कर दिखाता है जिसकी उम्मीद नहीं की जा सकती है और मन न हो तो आदमी हिल कर पानी भी नहीं पीता है। मन से हार कर मस्तिष्क से जीतने की स्थिति वर्तमान में देखने को मिल रही है। उज्जैन आने वाले अधिकारी आते तो उत्साह से हैं लेकिन उसके कुछ माह बाद उनके मन और मस्तिष्क में द्वंद की शुरूआत हो जाती है। इसके चलते प्रारंभिक रूप से जो अधिकारी मन लगाकर काम में लगे रहते हैं बाद में मस्तिष्क से लगते हैं और मस्तिष्क से काम को करने के चलते वे उलझकर रह जाते हैं। पिछले लंबें समय से यह हाल देखे जा रहे हैं। अधिकांश अधिकारी “आईने” से भी दूरी बनाकर रखना चाहते हैं। इनमें से ही कुछ मन से हार कर मस्तिष्क की स्थिति में काम चलाकर अपने एक्टिव होने का प्रमाण पेश कर रहे हैं लेकिन इस प्रक्रिया में कई सारी कमियों से बहुत कुछ उजागर हो रहा है। प्रारंभिक दौर में अधिकारियों की जो स्थिति थी वह अब थके –थके से क्यों दिखते हैं जो उर्जा उनमें उस समय थी जो जुनून उस समय देखा जा रहा था वह अब ठंडा दिखाई दे रहा है। खुसूर-फुसूर है कि अधिकांश अधिकारियों की कार्यशैलिेयों से ऐसा लगता है जैसे कि मालवा में बैलगाडी बगैर चालक के भी घर तक बैल ले जाते हैं लेकिन चालक उसमें बैठकर बैल को आर इसलिए मारता है कि बैलों को लगता रहे कि कोई बैठा हुआ है।