IAS  बनने के लिए  छात्र क्यों जान की  बाजी लगा रहे है …

प्रासंगिक

IAS  बनने के लिए  छात्र क्यों जान की  बाजी लगा रहे है …आईएएस का पद पिछले  दिनों दो कारण से चर्चा में आया है. एक पूजा खेडकर के कारण , दूसरा दिल्ली में तीन युवा अभ्यर्थी , जो कोचिंग सेण्टर में  आई ए एस की तैयारी कर रहे थे  बेसमेंट में बारिश का पानी भरने से उनकी दुखद मृत्यु हो जाने से .

  आई ए एस पद के पावर को प्राप्त करने के लिए सैकड़ों बच्चे दिल्ली के ओल्ड राजेंद्रनगर , मुखर्जी नगर के दडबो , बेस्मेंटों में असामान्य परिस्थितियों में रहकर  पढ़ाई कर रहे हैं .बारिश में राजेंद्रनगर में कोई करंट से तो कोई पानी भरने से  मौत के मुह में जा रहे है .परीक्षा के दबाव और असफलता चलते कई अभ्यर्थी आत्महत्या करके अपना जीवन  खो रहे है. इसी के साथ यूपीएससी के चेयरमैन ने समय पूर्व स्तीफ़ा दें कर मामले को ओर गर्म कर दिया था . सरकार के निशाने पर तमाम कोचिंग संचालक आ गये .आई ए एस  कैसे बनते हैं हर साल संघ लोक सेवा आयोग  सिविल सेवा परीक्षा आयोजित करता है .यह परीक्षा तीन चरणों में होती है .प्रारंभिक परीक्षा ,मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार. राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की इस परीक्षा में पूरे देश से 10 लाख अभ्यर्थी आवेदन करते है .अंतिम रूप से  सिलेक्ट केवल एक हजार के आसपास होते हैं. यूपीएससी में अंतिम रूप से चयनित  छात्रों में सबसे टॉप लेवल के 100 से लेकर 130 छात्रों को भारतीय प्रशासनिक सेवा जिसे IAS  कहा जाता है के लिए सेलेक्ट  किया जाता है .इसके बाद भारतीय पुलिस सेवा और उसके नीचे की रैंक लाने वाले अन्य सेंट्रल सर्विसेज जिसमें भारतीय राजस्व सेवा, रेल सेवा ,अकाउंट सर्विस आदि शामिल है के अधिकारी बनते हैं. ब्रिटिश राज से क्या सम्बन्ध है IAS का  गुलामी के दौर में अंग्रेजों ने भारत में अपने शासन को मजबूत करने के लिए इंडियन सिविल सर्विसेज का गठन किया . ICS के अधिकारी तब कलेक्टर के रूप में जिले के प्रभारी के रूप में कार्य करते थे .उनका कार्य लगान इकट्ठा करना और ब्रिटिश राज के विरुद्ध होने वाले विद्रोह को दबाना, जासूसी करवाना आदि होता था. इंडियन सिविल सर्विस के अधिकारियों ने स्वतंत्रता सेनानियों पर  आंदोलन के दौरान बड़े जुल्म ढाये.आजादी के बाद कांग्रेस के नेताओं का मत था कि भारतीय सिविल सेवा को समाप्त कर देना चाहिए. लेकिन भारत का एकीकरण करने वाले देश के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने इंडियन  सिविल सर्विस के स्थान पर IAS व IPS  गठन किया .उन्होंने कहा कि यह सेवा भारत को एकीकृत करके रखेगी . तभी से भारत में आई ए एस और आईपीएस का ढांचा विकसित हुआ. आज  दोनों सर्विसेज अपने-अपने तरीकों से देश की सेवा में संलग्न है.क्यों भाग रहे है युवा आई ए एस  बनने के पीछे    भारत में आई ए एस का  जलवा चारों तरफ है.जैसे ही  कोई युवा सिलेक्ट होता है बड़े बड़े नेता,बिजनेस मेन और अधिकारीयों मे उसको दामाद बनाने की होड़ लग जाती है .पहली फुरसत में उसका कुंवारापन करोड़ों मे बिक जाता है.होने वाले ससुर जी अच्छे काडर और पोस्टिंग की गारंटी भी होते है. एक बार सिविल सर्विस परीक्षा पास करने के बाद वह युवा सबसे पहले एसडीएम फिर ए डी एम, कलेक्टर, कमिश्नर ,सेक्रेटरी, प्रिंसिपल सेक्रेटरी और चीफ सेक्रेटरी तक पहुंचने की गारंटी के साथ सेवा शुरू करता है.परीक्षा पास होते हैं वह सर्वज्ञ हो जाता है .इंजीनियर ,डॉक्टर,रेलवे , विज्ञान , विमानन , आर बी आई का प्रमुख बन  सबको ज्ञान देने की स्थिति को प्राप्त कर जाता है. देश के हर शिक्षा संस्थाओं के प्रमुख ,भर्ती बोर्ड  के प्रमुख के  रूप में काम करने लगता है . केंद्र व राज्य सरकारों में  सभी विभागों का प्रमुख वही होता है .एक परीक्षा पास करो और जीवन भर राज करो . बस इसी के चलते इस पद को पाने के लिए छात्र जान  की बाजी लगा देते है . 12th फ़ैल मूवी और  विकास दिव्यकीर्ति  , अवध ओझा जैसे कोचिंग शिक्षकों व मालिकों ने सोशल मिडिया के जरिये सिविल सर्विसेज का काफी प्रचार किया . इसी के चलते हजारों छात्र दिल्ली में अमानवीय परिस्थितियोंमें रह रहे है . एक एक क्लास में 500  छात्र पढ़ रहे है , क्या पढ़ रहे होंगे यह विचारणीय है . इन सब बातों पर ध्यान देते हुए सरकार को कड़े रेगुलेशन लाकर उनका पालन कोचिंग सेंटर्स से करवाना होगा तभी स्तिथि सुधरेगी .आलेख ; हरिशंकर शर्मा