माफ करना बहन हम तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकते
दैनिक अवंतिका
माफ करना बहन हम तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकते रक्षाबंधन त्यौहार मनाया जा रहा है. कोलकाता के मेडिकल कॉलेज में हुई दरिंदगी के साए में मन रहे त्यौहार के अवसर पर हमें सोचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा कि हमारा देश, देश के भाई, देश का कानून निर्भया से लेकर आज तक बहनों को दरिंदगी से क्यों नही बचा सका है. इस भावना प्रधान देश में रक्षाबंधन रस्मि त्यौहार बनकर रह गया है. जो लोग इस तरह की दरिंदगी कर रहे हैं क्या वे किसी के भाई नहीं रहे होंगे.इस तरह की दरिंदगी को अनदेखा करने वाले लोग क्या किसी के रिश्ते में नहीं है. समाज और सरकार के दोहरे मापदंडों के चलते यह सब घटनाएं निरंतर घटती जा रही है. दिल्ली की बस में हुए निर्भया कांड ने तत्कालीन समय में जिस तरह से आम आदमी के मन को मथा था.कानून वालों को शर्म आई और कई संशोधन करना पड़े थे. लेकिन इन तमाम कानूनी हथियारों के बावजूद क्या देश की बहनें निर्भय हो पाई ? कोलकाता की घटना ने तो एक तरह से हमारे समाज की इज्जत ही उतार कर रख दी है.सामाजिकता मर गई है. कलकत्ता की इस घटना नें आज समूचे हिंदू समाज को जो हर साल रक्षाबंधन पर्व मनाता है और बहनों की रक्षा की गारंटी देता है के सम्मान को धूमिल कर दिया है. आज सोशल मीडिया , यूट्यूब पर कोलकाता मेडिकल कॉलेज में एक एमडी छात्रा के साथ हुई दरिंदगी की घटनाएं विस्तार से पड़ी हुई है.जिनको देख – सुनकर मन सिहर उठता है. क्या इस तरह की घटना को अंजाम देने वाले लोगों का हाथ क्षण भर के लिए कंपकपया नही होगा. यदि नहीं तो हम यह समझेंगे कि इस लोक से संवेदनशीलता मर चुकी है. चंद रूपयों के लिए बिके हुए मेडिकल शिक्षण संस्थाओं के पदाधिकारी राजनैतिक प्रश्रय के चलते अपने-अपने संस्थानों में कितने कुकर्म कर रहे हैं. यह घटना उसकी पराकाष्ठा है . बताया जाता है कि उक्त छात्रा को मेडिकल कॉलेज की तमाम अनियमितता पता लग गई थी.किस तरह से वहां पर मानव अंगों की तस्करी हो रही थी. ड्रग का रैकेट चल रहा था और बायोमेडिकल डिस्पोजेबल कचरे का किस तरह से बेचा जा रहा था आदि . यदि कोई व्यक्ति सिस्टम की किसी भी प्रकार की अनियमित को उजागर करता है तो उसे सजाए मौत सुना दी जाती है. बंगाल के कोलकाता मेडिकल कॉलेज की छात्रा को यदि रास्ते से हटाना ही था तो गोली मार देते.पर उसके साथ घंटो की गई दरिंदगी, हिंसा यह साबित करती है कि मानव से मानवता खत्म हो गई है. अंदर केवल पशु है जो धन कमाना,सत्ता को प्राप्त करना और लोगो को डराना जानता है. सब ऐसे ही चलता है सरकारी सस्थाएं ऐसी ही चलती है. प्राइवेट धन कमाने के लिए वह सब करती है जो उन्हे नही करना है. देश में पक्ष और विपक्ष अपने हिसाब से चलता है. आलोचना भी सुविधा के अनुसार की जाती है. यानी कि आरोपी लेफ्ट,राइट और मिडिल में से किस साइड का है यह देखा जाता है. उसी अनुसार आलोचना और मुद्दे को उठाया जाएगा. सरकारी भी घटना को जितना छोटा कर सकती है , करती हैं. बंगाल सरकार द्वारा किए गए कामों में इसे देखा जा सकता है. रक्षाबंधन के अवसर पर राखी बंधवाने वाले देश के भाइयों से आग्रह है कि वे एक बार सोचें की क्या वे ,क्या उनकी सरकार, क्या उनके चुने हुए प्रतिनिधि आज बहनों को सुरक्षा देने की स्थिति में है.या इसी तरह सरे आम निर्भया जैसी घटनाएं होती रहेगी . क्या हम चुपचाप मतलब परस्त होकर आर्थिक प्रगति करते रहेंगे. ज़ी डी पी और पांच ट्रिलियन इकोनोमी की गिनती लगाते रहेंगे. आज प्रश्न यह है कि क्या पक्ष, विपक्ष ,लेफ्ट, राइट, मिडिल सभी मिलकर इस देश की महिलाओं की सुरक्षा के लिए चर्चा करेंगे. सर्वमान्य हल निकालकर बने हुए कानूनों को ही बिना भेदभाव के लागू कर भेड़ियों को बचाने की बजाय जेल मे डालेंगे. चाहे अपराधी किसी पार्टी को चंदा देते हों. क्या इसी तरह की सर फुटव्वल से ही लोकतंत्र चलता रहेगा. क्या देश की निर्भयाएं इसी तरह बेइज्जत होती रहेगी . क्षणभर रुक कर सोचना चाहिए …..आलेख हरिशंकर शर्मा