घंटो तक पार्किंग से फंसी रही श्रद्धालुओं की गाड़ियां

उज्जैन। बाबा महाकाल की राजसी सवारी में देश भर के श्रद्धालु चार पहिया वाहन में सवार होकर पहुंचे थे। देर रात तक पार्किंग से गाड़ियां निकालने में उलझे रहे। कई स्थानों पर पार्किंग में प्रवेश द्वार तो था लेकिन निकासी द्वार नहीं होने से घंटो इंतजार करना पड़ा। प्रशासन की पार्किंग व्यवस्था फेल नजर आई।

धार्मिक नगरी के सबसे बड़े श्रावण-भादो मास महोत्सव की प्रमुख सवारी सोमवार को महाकाल मंदिर से निकाल गई। बाबा महाकाल 7 स्वरूपों में भक्तों को दर्शन देने सवारी मार्ग पर नगर भ्रमण करने पहुंचे थे। देशभर से लाखों श्रद्धालु बाबा महाकाल की एक झलक पाने के लिए धार्मिक नगरी में आए थे। प्रशासन और यातायात पुलिस विभाग ने श्रद्धालुओं के वाहनों को पार करने के लिए शहर के चारों ओर मार्गों पर स्थान चिन्हित किए थे। दोपहर में ही शहर की अधिकांश पार्किंग स्थल चार पहिया वाहनों से भर गए थे। रात 9:15 बजे बाद बाबा महाकाल की पालकी महाकाल मंदिर पहुंची और श्रद्धालुओं ने अपने गंतव्य का रुख करने के लिए पार्किंग स्थलों का रुख किया। लेकिन गाड़ियां निकालने के लिए उन्हें घंटो का इंतजार करना पड़ गया। प्रशासन में पार्किंग स्थल तो चिन्हित कर दिए थे और वाहनों को खड़ा भी करवा दिया था लेकिन वाहनों की निकासी के लिए व्यवस्था नहीं की गई थी। सबसे बड़ी परेशानी श्रीर सागर स्थित स्टेडियम में दिखाई दी। यहां पार्किंग प्रवेश द्वार तो था लेकिन निकासी द्वार नहीं होने से अफरा तफरी का माहौल बना रहा। गाड़ियां निकालने के बाद यहां से आगे बढ़ाने के मार्ग की काफी सकरे होने पर जाम की स्थिति निर्मित होती रही। श्रीरसागर स्टेडियम की पार्किंग फुल होने पर आसपास भी सैकड़ो की संख्या में वाहन पार्क हो गए थे। जिसके चलते श्रद्धालुओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। हरिफाटक ब्रिज के नीचे गुरुवारिया हाट बाजार में भी ऐसे ही हालत दिखाई दिए। यहां भी वाहन पार्क करने का एक ही रास्ता था। कार्तिक मेला ग्राउंड में स्थिति कुछ ठीक थी लेकिन वाहन निकालने के लिए मशक्कत करते श्रद्धालु चालक दिखाई दिए। धार्मिक नगरी में होने वाले बड़े आयोजनों के दौरान प्रशासन द्वारा व्यवस्थाओं का दावा तो खूब किया जाता है लेकिन श्रद्धालुओं को भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। महाकाल मंदिर के आसपास भी श्रद्धालु परेशान होते रहे। हर रास्ते पर इतने अधिक बैरिकेट्स लगाए गए थे कि श्रद्धालुओं को आने-जाने के लिए लंबा रास्ता तय करना पड़ रहा था। श्रद्धालु अपने आराध्य देव की एक झलक पाने के लिए सभी मुसीबत उठाने को तैयार रहते हैं लेकिन प्रशासन द्वारा श्रद्धालुओं को होने वाली असुविधा का ध्यान नहीं रहता है। वह तो किसी भी तरह धार्मिक आयोजन को पूरा करने में ही व्यस्त हो जाते हैं।