नदियों से रेत लेने की होगी निर्भरता कम -एम सेंड नीति तैयार हो रही, प्लांट लगाने के लिए लाइसेंस मिलने में नहीं होगी बाधा

उज्जैन- इंदौर। पूरे प्रदेश के साथ ही इंदौर उज्जैन क्षेत्र में अब जल्द ही नदियों से रेत लेने की निर्भरता कम होगी। दरअसल सरकार पर्यावरण के साथ ही नदियों के संरक्षण के लिए एम सेंड अर्थात मैन्यूफेक्चर्ड सैंड अर्थात पत्थर से रेत बनने वाली रेत को बढ़ावा दे रही है। बता दें कि रेत खनन के मामले कई बार सामने आते रहते है।
इससे नदियों से रेत लेने की निर्भरता कम होगी। इसके साथ ही बारिश के दौरान घर बनाने वालों को सस्ती रेत मिलेगी। सरकार एम-सेंड नीति तैयार कर रही है, यह नीति अगले माह बनकर तैयार हो जाएगी। इसकी ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार कर ली गई है।

सूत्रों के अनुसार अब गिट्टी, पत्थर की खदान की लीज और क्रशर संचालित करने का लाइसेंस लेने वालों को एम-सेंड प्लांट लगाने के लिए सरलता से लाइसेंस मिल जाएगा। गिट्टी, पत्थर की पुरानी खदानों के संचालन की भी अनुमति मिलेगी। इसके लिए सिर्फ एक आवेदन देना होगा। उद्योग विभाग प्लांट लगाने पर 40 फीसदी की छूट देगा।

खनिज साधन विभाग ने इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए रॉयल्टी में भी छूट दी है। इस तरह की रेत में 50 रुपए प्रति घन मीटर न्यूनतम कीमत रखी है। जबकि नदियों से निकलने वाली रेत खदानों के लिए 250 रुपए प्रति घन मीटर न्यूनतम कीमत रखी गई है। नदियों से निकाली गई रेत की कीमतें ठेकेदार पर निर्भर है। ठेकेदार जितनी महंगी रेत खदानें लेगा उतनी ही महंगी रेत बेचेगा। वर्तमान में कई जगह रेत तीन सौ रुपए घनमीटर तक रेत मिलती है। जबकि एम-सेंड में इसका प्रभाव नहीं होता है। नदियों से निकलने वाली रेत से एमसेंड बेहतर होती है। इसमें मिट्टी नहीं होती है। इसकी पकड़ भी मजबूत होती है।  एम-सेंड के दाने बराबर होते हैं, इससे प्लास्टर और फ्लोरिंग के लिए उपयोगी है।