मनुष्य का एक ही कर्म व धर्म है और वह है मानवता

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जो व्यक्ति अपने जीवन को मानवता की सेवा में समर्पित कर दे, वही सच्चा सेवक है। आज ज्यादातर लोग भौतिक वस्तुओं को पाने के लिए अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं, लेकिन जब वे इस दुनिया से विदा होते हैं तो वे अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा पाते। उनकी सारी कमाई यहीं रह जाती है। अगर वे कोई चीज अपने साथ ले जाते हैं तो वह है उनके अच्छे कर्म और लोगों की दुआएं।

मनुष्य का एक ही कर्म व धर्म है और वह है मानवता। हम इस दुनिया में इंसान बनकर आए हैं तो सिर्फ इसलिए कि हम मानव सेवा कर सकें। पूरे विश्व में ईश्वर ने हम सभी को एक-सा बनाया है। फर्क बस, स्थान और जलवायु के हिसाब से हमारा रंग-रूप, खान-पान और जिंदगी जीने का अलगअलग तरीका है। आत्मभाव से हर मनुष्य एक समान है। गुरु नानक देव जी कहते हैं कि एक पिता की संतान होने के बावजूद हम ऊंचे-नीचे कैसे हो सकते हैं। हम सब एक ही मिट्टी के बने हैं। एक जैसे ही तत्व सबके भीतर हैं। जिस दिन यह सच्ची बात हमारे मन में स्थापित हो जाएगी तो फिर सभी भेद मिट जाएंगे और तब हम इंसानियत की राह पर अग्रसर होकर भाई-चारा स्थापित करने लगेंगे। कोई धर्म शास्त्र आपस में वैर रखना नहीं सिखाता।

सभी एक ही संदेश देते हैं कि मानवता की सेवा ही सच्चे अर्र्थों में ईश्वर की सेवा है। एक बार स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका प्रवास पर थे तो किसी ने उनसे कहा कि कृपया आप मुझे अपने हिंदू धर्म में दीक्षित करने की कृपा करें। स्वामी जी बोले, महाशय मैं यहां हिंदू धर्म के प्रचार के लिए आया हूं, न कि धर्म-परिवर्तन के लिए। मैं अमेरिकी धर्म-प्रचारकों को यह संदेश देने आया हूं कि वे अपने धर्म-परिवर्तन के अभियान को सदैव के लिए बंद करके प्रत्येक धर्म के लोगों को बेहतर इंसान बनाने का प्रयास करें। इसी में हर धर्म की सार्थकता है। वर्तमान में हमने मानवता को भुलाकर अपने को जाति-धर्म, गरीब-अमीर जैसे कई बंधनों में बांध लिया है और उस ईश्वर को अलग-अलग बांट दिया है। धर्म एक पवित्र अनुष्ठान भर है, जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म मनुष्य में मानवीय गुणों के विचार का स्रोत है, जिसके आचरण से वह अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। मानवता के लिए न तो पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होती है और न ही भावना की, बल्कि सेवा भाव तो मनुष्य के आचरण में होना चाहिए। जो गुण व भाव मनुष्य के आचरण में न आए, उसका कोई मतलब नहीं रह जाता है।

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