सरकारी कार्यालयों में अफसरों की मनमानी…कर्मचारी संघों के बीच चर्चा नहीं

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एक दशक से बातचीत नहीं होने से कर्मचारियों की समस्या हल होने का नाम नहीं ले रही

उज्जैन। चाहे उज्जैन जिला हो या फिर चाहे प्रदेश के किसी भी शहर में संचालित होने वाले सरकारी कार्यालय ही क्यों न हो हर जगह अफसरों की मनमानी चल रही है। दरअसल यह मनमानी कर्मचारियों की समस्याओं के मामले में है। बताया गया है कि सरकार और कर्मचारी संघों के बीच करीब एक दशक से कर्मचारियों की समस्याओं को लेकर बातचीत ही नहीं हुई है इसलिए कर्मचारियों की समस्या जस की तस बनी हुई है।
वरिष्ठ कर्मचारी नेता अनिल वाजपेयी ने ’अवंतिका’ को बताया कि सरकार और कर्मचारी संघों के बीच संवाद नहीं होने के कारण कर्मचारियों की समस्या दूर नहीं हो पा रही है।  सरकार और कर्मचारी संघों के बीच संवाद की परंपरा बंद  होने के कारण अफसरों की मनमानी बढ़ गई है।

सरकार के दिशा-निर्देशों का भी पालन नहीं

आलम यह है कि अफसर सरकार के दिशा-निर्देशों का भी पालन नहीं कर रहे हैं। इस कारण सरकार के प्रति कर्मचारियों का रोष दिन पर दिन बढ़ रहा है। जानकारी के अनुसार वर्ष 2015 तक कर्मचारी संघों को चर्चा के लिए बुलाया गया। इसके बाद ऐसा कभी आमंत्रण नहीं गया कि सीएम कर्मचारी संघों से संवाद करेंगे। यह जरूर है कि त्योहारों पर कर्मचारियों को निमंत्रण दिए गए, लेकिन ऐसे समय में कर्मचारी अपनी मांगों से संबंधित कोई भी बात नहीं रख पाए। अब कर्मचारियों ने मांग उठाई है कि तत्काल सरकार कर्मचारियों से चर्चा करना शुरू करे। ताकि वह अपनी समस्या रख सकें।  यह स्थिति है कि लगभग हर विभाग का कर्मचारी सरकार से असंतुष्ट है।

इसकी वजह यह है कि कर्मचारियों की बात सरकार तक नहीं पहुंच पा रही है। इस कारण कर्मचारियों की मांगें लंबें समय से अधर में हैं। कर्मचारियों की जो मांगें लंबित है उनमें बंद पड़ा प्रमोशन का तत्काल चैनल खोला जाए, लिपिक कर्मचारियों की वेतन विसंगतियां, स्टेनोग्राफरों के विसंगतिपूर्ण ग्रेड-पे में सुधार, विभागों में छूटे संवर्गों को चतुर्थ समयमान, तत्काल उच्च पदनाम की प्रक्रिया पूर्ण हो, पेंशनरों को समय पर सभी सुविधाएं, छत्तीसगढ़ से धारा 49 की समाप्ति शीघ्र हो, दैवेभो कर्मियों का एकमुश्त नियमितीकरण,स्थाई सेवकों को नियमित सभी सुविधाएं, बाल विकास की पर्यवेक्षकों को ग्रेड-पे और  नियम से परामर्शदात्री समितियों का आयोजन आदि जानकारों का कहना है कि सरकार और कर्मचारी संघों के बीच संवाद होते रहने के कारण अधिकारी भी सतर्क और संवेदनशील बने रहते थे।
अब तो विभागों में अफसर कर्मचारी संगठनों की बात तक नहीं सुन रहे हैं।   गौरतलब है कि करीब एक दशक से सरकार और कर्मचारी संघों के बीच संवाद की परंपरा बंद पड़ी है। इसके पीछे सरकारी सेवकों ने संघों में पनपे आपसी विवादों को भी एक वजह बताया गया है। कर्मचारी दबाव बना रहे कि अब नियमित वार्ता जरूरी है, ताकि सरकार को प्रदेश की जमीनी हकीकत पता चल सके और विकास को पंख लगा सकें। सेवकों के अनुसार जब से कर्मचारी संगठनों का गठन हुआ है। तभी से मुख्यमंत्री और कर्मचारियों के बीच संवाद की परंपरा चलती रही है। पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के दूसरे कार्यकाल तक बाकायदा यह दौर चलता रहा। इसके बाद चर्चा बंद कर दी गई। जबकि वर्ष में एक बार मुख्यमंत्री स्वयं सभी कर्मचारी संगठनों को चर्चा के लिए बुलाया करते थे। इस दौरान कर्मचारी खुल कर अपनी बात रखा करते थे।

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