चाय की मांग बढ़ रही, निर्यात बढ़ाने पर सरकार का जोर
भारत में उत्पन्न होने वाली चाय की डिमांड न केवल अपने देश में है बल्कि विदेशों में भी लगातार बढ़ रही है। यही कारण है कि केन्द्र की सरकार अब निर्यात को ओर अधिक बढ़ाने पर जोर दे रही है। टी बोर्ड के कार्यकारी एम मुथुकुमार ने एक कार्यक्रम में इसको लेकर बयान भी दिया है। उन्होंने कहा कि भारत 2047 तक मूल्य संवर्धन के साथ 400 मिलियन किलोग्राम चाय निर्यात का लक्ष्य बना रहा है।
यूनाइटेड प्लांटर्स एसोसिएशन ऑफ साउथ इंडिया के 131 वें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए, मुथुकुमार ने कहा कि चाय के लिए स्थिर निर्यात एक मुख्य मुद्दा रहा है, जिसकी घरेलू खपत बहुत अधिक है। रूस और ईरान जैसे मौजूदा बाजारों में हिस्सेदारी बनाए रखते हुए नए बाजारों पर कब्जा करने के प्रयास किए जाने चाहिए।
चाय का निर्यात दशकों से 200 मिलियन किलोग्राम के आसपास स्थिर है, जबकि घरेलू खपत में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। 1950 में चाय का निर्यात लगभग 201 मिलियन किलोग्राम था, जो 2023 में बढ़कर 232 मिलियन किलोग्राम हो गया। 1950 में उत्पादन 278 मिलियन किलोग्राम था, जो 2023 में बढ़कर 1,394 मिलियन किलोग्राम हो गया है। घरेलू बाजार पर नजर डालें तो 1950 में 77 मिलियन किलोग्राम से बढ़कर 2023 में 1,162 मिलियन किलोग्राम हो गया है।
मुथुकुमार ने कहा, “घरेलू जरूरतों और निर्यात दोनों को पूरा करने के लिए हमें ज्यादा प्रयास की आवश्यकता है। इसके लिए पूरी तरह से आत्मनिर्भर होने के लिए, अनुसंधान और विकास को मजबूत करने और विश्व मानकों के अनुसार गुणवत्ता परीक्षण में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए उत्पादन को तदनुसार बढ़ाना होगा।”
भारत दुनिया का सबसे बड़ा काली चाय उत्पादक है, जो दुनिया के चाय उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा है और लगभग 12 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है। चाय क्षेत्र का विजन उत्पादन में हिस्सेदारी बनाए रखना और बेहतर मूल्य प्राप्ति के लिए मूल्य संवर्धन के साथ निर्यात में सुधार करना है।
2024 के रोडमैप
घरेलू खपत बढ़ाने के लिए निरंतर प्रचार अभियान।
लागत कम करने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए संगठित क्षेत्र द्वारा खेत प्रथाओं में मशीनीकरण को प्रोत्साहित करना।
विश्व स्तरीय एकीकृत चाय पार्क की स्थापना।
सीधे स्रोत से चाय की सोर्सिंग के लिए वैश्विक ई-मार्केट प्लेस की स्थापना करना।
चाय उत्पादन में जैविक खेती को अपनाना और रसायनों का कम उपयोग करना।