खुसूर-फुसूर ये करे न वो,आमजन की भिडंत तय

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खुसूर-फुसूर

ये करे न वो,आमजन की भिडंत तय

समस्याएं हद पार कर जाएं तो वे शिकायत का स्तर धर लेती हैं। शिकायत पर अगर ध्यान न दिया जाए तो वे विवाद का स्तर पकड लेती हैं। इसके बाद तो फिर आम आदमी का मसला थाना,राजनैतिक दांव पेंच और उसके आगे कोर्ट कचहरी तक पहुंच जाते हैं। जिले में आम आदमी की रोज मर्रा की समस्याओं को कर्णधार नजरअंदाज कर रहे हैं। इसके चलते ढेरों आवेदन विभिन्न विभागों में लंबित पडे रहते हैं। लंबित समस्या निदान के आवेदन पर नजरअंदाजी के चलते शिकायती आवेदनों का ढेर भी लग रहा है। ये एकाध विभाग का मसला नहीं है। जन्म से लेकर मृत्यू तक साध निभाने का दावा करने वाली शहरी संस्था हो चाहे,नियमों का पालन करवाने वाले हों सभी जगह एक से आलम हैं। यातायात की समस्या जन्म –मृत्यू वाली संस्था के साथ ही सफेद वर्दी वालों के निदान पर निर्भर करती है। दोनों ही विभागों को इस समस्या और इससे उत्पन्न शिकायतों के मसले से कोई लेना देना नहीं बचा है। इसके चलते शहर में अराजकता के हाल हैं। कहीं भी किसी भी क्षेत्र में दुकानों के सामने सडकों पर कोई भी ठेला खडा होना आम हो गया है। इसके चलते दुकानदार परेशान होकर संबंधितों को समस्या का आवेदन देते हैं। निदान नहीं होने पर शिकायत की स्थिति बनती है। इस पर भी जिम्मेदारों की नजरअंदाजी से विवाद होना तय है। ये सहज वाले मामले नहीं हैं। इनके पीछे दुकानदार को ब्लेकमेल करने का मुंबईया और इंदौरी माफिया तरीका ए षडयंत्र काम कर रहा है। नए शहर के फ्रीगंज में यहीं हाल हैं। अधिकांश दुकानदार इसी से परेशान हैं। समस्या को कई स्तरों पर रखने के बाद भी मसले हल नहीं हो रहे हैं। शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। विवाद के हालात निर्मित हो रहे हैं। अच्छे –खासे मालवा के व्यवहारशील जनों में जहर घुल रहा है। खुसूर-फुसूर है कि समस्याओं ,शिकायतों का निदान दोनों ही जिम्मेदार इसीलिए नहीं कर रहे हैं कि विवाद होने पर ही उन्हें और उनके सहित उनके अंगों को विवादित दोनों पक्षों से लाभ मिलता है। वे अन्याय को खत्म करने की बजाय अन्य आय के स्त्रोत इसी तरह से पैदा करते ह

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