मनुष्य के हृदय में भगवान का वास है

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मनुष्य के हृदय में भगवान का वास है। श्री हरि पाप, पाखंड, रजोगुण, तमोगुण से हमेशा दूर रखते हैं। भगवान का उन्हीं लोगों के हृदय में वास होता है, जो सत्कर्म करते हैं। अनैतिक कमाई का लाभ तो कोई भी उठा सकता है। परंतु तुम्हारे अनैतिक कर्मों को तुम्हें ही भोगना होगा। कहा, किसी भी स्थान पर बिना निमंत्रण जाने से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि जहां आप जा रहे है वहां आपका, अपने इष्ट या अपने गुरु का अपमान हो। यदि ऐसा होने की आशंका हो तो उस स्थान पर जाना नहीं चाहिए। चाहे वह स्थान अपने जन्म दाता पिता का ही घर क्यों हो। मनुष्य जीवन भगवान की अनंत कृपा का फल है। भगवान को भी मनुष्य योनि बहुत प्रिय है। मनुष्य जीवन पाकर भी मोक्ष की इच्छा नहीं की, प्रयत्न नहीं किया, तो उसका मानव होना ही बेकार है। जिसके भीतर धर्म हो, प्रेम हो, वही मनुष्य है। मनुष्य में से प्रेम निकाल दे, तो उसकी कोई कीमत नहीं होती है। धर्म जीवन का आधार है। धर्म के बिना मनुष्य की कोई कीमत नहीं है। सुदामा के जीवन में धर्म का आधार था, तो उन्हें भगवान द्वारकाधीश के दर्शन हुए। सुदामा यानी संयम। जीवन में स्वयं की बहुत आवश्यकता है। भगवान मित्रता भी करते हैं, तो संयम से मित्रता करते हैं। सुदामा के जीवन में संयम का अभाव था, परंतु परमात्मा में भाव होने से उनका जीवन आनंदित बना रहा। यदि हम भी सुदामा बने, तो भगवान हमारी भी झोली भर देंगे। भगवत गीता में तो धन की तीन गति होती है दान, भोग और सत्यानाश। पैसे का दान करो या उसको उपभोग करें। जो लोग दान नहीं करते, उपभोग नहीं करते हैं, उनके धन का नाश ही होता है। जो लक्ष्‌मी का सदुपयोग करता है, उसको भगवान की गोद मिलती है।

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