आचार्य श्री विद्यासागर जी और इंदौर के लिए उनका योगदान
इंदौर। राष्ट्र का संपूर्ण जैन समाज आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के समाधिस्थ होने के बाद आज पहली बार उनके जन्मदिवस पर उन्हें विनत भाव से स्मरण कर उन्हें श्रद्धा सुमन एवं विननयांजलि समर्पित करेगा।
10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के ग्राम सदलगा में जन्मे और 17 फरवरी 2024 को चंद्रगिरी डोंगरगढ़ (छ ग) मैं समाधिस्थ हुए श्रमण संस्कृति के महामहिम संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने 5 दशक से अधिक समय तक देश के विभिन्न शहरों में पदत्राण विहीन चरणों से पद बिहार करते हुए अथवा चातुर्मास करते हुए अपने त्याग ,तपस्या ,ज्ञान ,साधना, और अपनी करुणा की प्रभा से न केवल जैन क्षितिज को आलोकित किया वरन श्रमण संस्कृति (जिन शासन) को भी गौरवान्वित किया, वे जैनों के ही नहीं जन-जन के संत थे।
मालव धरा (इंदौर) और धरा पर निवासरत बहुत सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें दो बार आचार्य श्री का चरण सानिध्य मिला और उनकी चरण वंदना एवं अभिषेक करने का अवसर भी प्राप्त हुआ। पहली बार 29 जुलाई 1999 को आचार्य श्री अपने 44 शिष्यों के साथ और दूसरी बार सन 2020 में 29 शिष्यों के साथ चातुर्मास के निमित्त नगर में आए थे (हालांकि सन 1967 में भी आप ब्रह्मचारी विद्याधर के रूप में तीन दिन के लिए आचार्य श्री देश भूषण जी महाराज के संघ के साथ इंदौर आए थे) आचार्य श्री का धर्म, समाज, संस्कृति , साहित्य, राष्ट्रभाषा, गौ रक्षा, स्त्री शिक्षा, चिकित्सा एवं हथकरघा आदि क्षेत्रों में जो अवदान है वह वर्णणातीत और स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाने योग्य है। इंदौर नगर में भी उनके ही आशीर्वाद एवं प्रेरणा से दयोदय चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना,और वहां संचालित प्रतिभास्थली (आवासीय कन्या विद्यालय), गौशाला, एवं सहस्त्र कूट एवं सर्वतोभद्र जिनालय का होने जा रहा निर्माण उनकी ही प्रेरणा एवं आशीर्वाद का सुफल है।
यहां यह उल्लेख करना अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा कि आचार्य श्री शरद पूर्णिमा के चंद्रमा के समान शीतल और सूर्य की भांति तपस्या के तेज से अलंकृत थे, आज वह हमारे बीच नहीं है लेकिन उनका नाम, काम और अवदान एवं स्मृतियां उन्हें हमेशा जीवंत बनाए रखेंगी वे थे, वे हैं और रहेंगे। ऐसे महा मुनींद्र समाधिस्थ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के अवतरण दिवस पर कोटि कोटि नमन।